एक नहीं दो राजनीतिक विरासतों में हिस्सेदारी पर दावा
एम हसीन
मंगलौर। जब दलों की राजनीति व्यक्तित्वों के इर्द गिर्द सिमट जाए तो ऐसा हो जाता है। 2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बसपा के तत्कालीन दिग्गज हाजी सरवत करीम अंसारी जब बसपा के भीतर भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे थे, जब बसपा ने चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी को अपना नगर पालिका अध्यक्ष पद का टिकट दे दिया था, तब हाजी के सामने इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं था कि वे निर्दलीय रूप में अपना प्रत्याशी लड़ाएं और यहां की दूसरी राजनीतिक हकीकत क़ाज़ी निजामुद्दीन के सामने अपनी चुनौती बरकरार रखें। तब क़ाज़ी निजामुद्दीन चौधरी इस्लाम को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा रहे थे जो कि तेली बिरादरी से आते हैं। हाजी ने भी तेली बिरादरी के ही डा शमशाद की पहल पर उनके भाई हाजी दिलशाद को प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़ाया और चेयरमैन बनाया। इस बड़ी लड़ाई में चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी बसपा टिकट होने के बावजूद कोई करिश्मा नहीं दिखा सके।
दरअसल, हाजी सरवत करीम अंसारी उनके चाचा थे और जुल्फिकार ने भी कहीं न कहीं इसी बात पर तसल्ली कर ली थी कि चाचा का बड़ा रुतबा कायम रहा तो बिरादरी का जलवा भी कायम रहेगा जो भविष्य में उनके लिए रास्ता बनाएगा। वैसे भी मंगलौर की अंसारी राजनीति का दारोमदार क़ाज़ी विरोध पर है। क़ाज़ी कैंप को खाद पानी देकर अंसारी फैक्टर को कायम नहीं रखा जा सकता यह बात जुल्फिकार बेहतर जानते थे। सो, वे खामोश हो गए थे। इसका नतीजा हाजी सरवत करीम अंसारी को तो 2022 में यह हुआ कि वे डा शमशाद की मदद से विधानसभा चुनाव जीत गए और इसी खामोशी का जुल्फिकार को इनाम यह मिला, जैसाकि वे खुद बताते हैं कि, “हाजी ने उन्हें अगला निकाय चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था।” इसी आश्वासन को याद रखते हुए जुल्फिकार अंसारी ने हाजी का देहांत हो जाने के फलस्वरूप पैदा हुई उप चुनाव की स्थिति में भी विधानसभा चुनाव लड़ने या बसपा का टिकट मांगने का इरादा कायम नहीं किया। इसके विपरीत उन्होंने जन्नतनशीन हाजी के पुत्र उबेदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी को विधानसभा का उप चुनाव लड़ाया। अब सवाल निकाय चुनाव का है। जुल्फिकार का कहना है कि निकाय चुनाव उन्हें लड़ाने का मरहूम हाजी का उन्हें जो आश्वासन था। और निकाय चुनाव लड़ने का उनका इरादा तो 2018 से ही कायम है। इसलिए निकाय चुनाव में मरहूम हाजी के कैंप से चुनाव लड़ने का उनका हक बनता है।
दूसरा मसला उनकी अपनी पारिवारिक विरासत का है। यह जग जाहिर है कि वे 4 बार यहां नगर पालिका अध्यक्ष रहे अख्तर अंसारी और एक बार अध्यक्ष रहीं सरवरी अंसारी के कनिष्ठ पुत्र हैं। उनका कहना है कि उनके परिवार की समृद्ध राजनीतिक परंपरा है वह उन्हें केवल अंसारी बिरादरी का ही नहीं बल्कि समग्र समाज का प्रतिनिधित्व करने का हौसला देती है और उनके वालीदैन ने न तो पद पर रहते हुए राजनीतिक रूप से और न ही सामाजिक जीवन में जन कल्याण के काम से कभी मुंह मोड़ा। उन्होंने समाज को हिस्सों में बांटकर देखने की बजाय समग्र रूप में देखा और खिदमत की। जुल्फिकार के उपरोक्त तमाम दावे सही हो सकते हैं। लेकिन एक समस्या ऐसी है जो केवल उन्हीं के साथ है। वह यह कि उनके बड़े भाई कलीम अख्तर अंसारी भी निकाय चुनाव में हिस्सेदारी करने के इच्छुक हैं। इसी योजना के तहत उन्होंने उप चुनाव में क़ाज़ी निजामुद्दीन का न केवल साथ दिया बल्कि उन्हें वोट भी दिलाए। मसला यह है कि अगर कलीम अंसारी ने भी चुनाव में शिरकत की तो अंसारी बिरादरी किसे मरहूम दंपत्ति अख्तर अंसारी सरवरी अंसारी का वारिस मानेगी और किसे समग्र समाज अंसारी बिरादरी का प्रतिनिधि मानेगा!