विधानसभा उप चुनाव में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के रह चुके हैं खास सिपहसालार
एम हसीन
मंगलौर। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की मानसिकता में भले ही कोई फर्क न हो लेकिन दोनों दलों की संस्कृति में खासा अंतर है। इसे यूं समझा जा सकता है कि रुड़की के भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा ने 2019 के निकाय चुनाव में अपने समर्थक गौरव गोयल को भाजपा का मेयर टिकट दिलाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी लेकिन पार्टी ने गोयल को टिकट नहीं दिया था; यहां तक कि पार्टी ने मयंक गुप्ता को प्रत्याशी बनाकर गौरव गोयल के ही सामने हारते हुए देखना मंजूर किया था लेकिन गौरव गोयल को टिकट नहीं दिया था।
दूसरी ओर मंगलौर में पिछले निकाय चुनाव के दौरान क़ाज़ी निज़ामुद्दीन विधायक भी नहीं थे, फिर भी पार्टी ने उन्हीं की संस्तुति पर चौधरी इस्लाम को टिकट दे दिया था; वह भी तब, जब 2013 का निकाय चुनाव पार्टी से बगावत करके लड़ने और जीतने के आरोप में चौधरी इस्लाम निष्कासित चले आ रहे थे। अब मंगलौर में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन न केवल विधायक हैं बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय संगठन सचिव भी हैं। फिर यह तो माना नहीं जा सकता कि यहां निकाय टिकट का निर्धारण उनके अलावा कोई और करेगा। पिछले साल ही क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की शरण में आए डा शमशाद इस स्थिति को समझते हैं। वे यह भी समझ रहे हैं कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन निकाय के पार्टी टिकट को लेकर खामोश हैं जबकि उनके अधिकांश समर्थक और क्षेत्र के लोग चाहते हैं टिकट चौधरी इस्लाम के ही नाम जाए। ऐसे में सवाल यह है कि क्या डा शमशाद टिकट के मामले में बाजी मार सकते हैं?
दरअसल, 2008 के निकाय चुनाव में बना और 2018 के चुनाव तक चला चौधरी इस्लाम बनाम डा शमशाद फैक्टर यहां इस बार कम से कम अभी तक सिर नहीं उठा पा रहा है। कारण यह बसपा के दिग्गज हाजी सरवत करीम अंसारी अब हयात नहीं हैं। उनके जीवन काल में होता यह आया है कि चौधरी की कमान क़ाज़ी सभालते थे और शमशाद की कमान हाजी। फिर इन्हीं दोनों में कोई एक निकाय प्रमुख बनता था। यह फैक्टर अब तभी बन सकता है जब डा शमशाद मोंटी कैंप को ज्वाइन करें और केवल मोंटी ही नहीं बल्कि समूची अंसारी बिरादरी उसी प्रकार शमशाद को चुनाव लड़ाना मंजूर करे जैसे पिछली बार हाजी की अगुवाई में लड़ाया गया था। लेकिन ऐसे हालात नहीं हैं। पहली बात मोंटी की खुद की निकाय चुनाव में जाने की ख्वाहिश का चर्चा है, दूसरे अंसारी बिरादरी के विभिन्न चेहरे निकाय अध्यक्ष पद के दावेदार हैं। इन सब को मोंटी तब भी एकजुट नहीं कर सके थे जब वे खुद चुनाव लड़ रहे थे। कलीम अख्तर अंसारी और नबी हसन अंसारी आदि कई लोग उप चुनाव में मोंटी के खिलाफ क़ाज़ी के साथ गए थे और जमीर हसन अंसारी आदि भाजपा प्रत्याशी भड़ाना के साथ गए थे। इसी का परिणाम यह हुआ था न केवल पहली बार क़ाज़ी मंगलौर नगर से साढ़े 4 हजार वोटों की लीड लेकर निकले थे बल्कि भाजपा को भी पहली बार नगर में 4 हजार 700 वोट मिले थे। फिर डा शमशाद खुद भी शायद मोंटी कैंप में वापिस न लौटना चाहें।
लेकिन कम से कम आसन्न चुनाव में उनके लिए क़ाज़ी कैंप में भी संभावना न के बराबर है। ऐसे में यह तो हो सकता है कि वे इस बार अपने दम पर निर्दलीय चुनाव में चले जाएं लेकिन क़ाज़ी कैंप उन्हें कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ाना मंजूर कर पाएगा इसकी संभावना न के बराबर है। यही स्थिति कलीम अख्तर की भी दिखाई देती है। वे भी चाहें तो निर्दलीय चुनाव में जा सकते हैं लेकिन कांग्रेस टिकट उनके लिए भी आउट ऑफ क्वेश्चन ही दिखता है।