भावी बोर्ड से क्या हैं रुड़की वासियों की अपेक्षाएं?
एम हसीन, रुड़की। नगर निगम चुनाव के लिए तैयारियां जारी हैं। उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव हो जाएगा और नया बोर्ड अस्तित्व में आ सकता है। लेकिन सवाल दो हैं। पहला यह कि क्या वाकई यहां चुनाव हो जाएगा? इसका करा हालात का यह इशारा है कि मामला एक बार फिर उच्च स्तरीय राजनीति के दबाव में कानूनी दांव पेंच में फंस सकता है। दूसरा सवाल यह कि निगम का नया बोर्ड अगर अस्तित्व में आया भी तो वह पिछले दो बोर्डों से किन अर्थों में अलग होगा और उसका नगर की जनता को क्या लाभ होगा? कम से कम पिछले दो बोर्डों का इतिहास तो यह बताता है कि नगर निगम जिस बिंदु पर अपने गठन के समय खड़ा था, उससे अभी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा है। बोर्ड के दोनों कार्यकाल बेहद विवादों का शिकार रहे और दोनों मेयरों के फजीहत का शिकार होना पड़ा सो अलग।
रुड़की नगर पालिका परिषद को उच्चीकृत कर 2013 में निगम बनाया गया था और उसी साल पहला चुनाव नगर पालिका परिषद वाले पुराने परिसीमन पर मात्र 89 हजार वोटों के आधार पर ही करा दिया गया था। इस जल्दी के पीछे सरकार की तब क्या मंशा थी, यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है; खास तौर पर इसलिए कि नगर में जो अगला चुनाव जो 2018 में हो जाना चाहिए था, वह नहीं हो पाया था। 2013 के अप्रैल में गठित हुए यशपाल राणा के नेतृत्व वाले पहले नगर निगम बोर्ड का कार्यकाल मई 2018 में पूरा हो गया था लेकिन चुनाव हुआ था 2019 के दिसंबर में; अर्थात डेढ़ साल की देरी से। 2019 में गौरव गोयल के नेतृत्व में निर्वाचित हुए बोर्ड का कुछ महीने का कार्यकाल अभी बाकी है और उम्मीद की जा रही है कि इस बार समय से चुनाव हो जाएगा। लेकिन यह उम्मीद ही है। जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं उनका एक परिणाम यह भी हो सकता है कि चुनाव न हो पाए।
दरअसल, रामपुर पाडली का जिन्न बोतल से बाहर निकलता हुआ दिखाई दे रहा है। सब जानते हैं कि 2015 में तब की कांग्रेस सरकार ने निगम का जो परिसीमन किया था उसके तहत रामपुर, मतल्लपुर, सुनहरा, शफीपुर, पाडली, शेरपुर और खंजरपुर को रुड़की निकाय में शामिल किया गया था। लेकिन 2017 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने इसे बदल दिया था। रामपुर और पाडली को बाहर कर दिया गया था जबकि मोहनपुरा, मोहम्मदपुर और आसफनगर को इसमें शामिल कर लिया गया था। मामला हाईकोर्ट पहुंचा था जहां सरकार हार गई थी। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जहां उसका कोई निर्णय अभी तक नहीं आ पाया है। इस बीच भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ही रजामंदी से अपने परिसीमन पर 2019 में चुनाव करा दिया था। दूसरी ओर पाडली और रामपुर को अलग अलग नगर पंचायतों का दर्जा दे दिया गया था। पाडली में पनियाला को और रामपुर में इब्राहिमपुर व सालियार को शामिल किया गया था। अब अगर सरकार की चलती है तो रामपुर और पाडली में नगर पंचायतों का तथा रुड़की में पिछले परिसीमन पर ही निगम का चुनाव हो जाएगा। लेकिन अहमियत इस बात की भी है कि सुप्रीम कोर्ट में जारी तत्संबंधी मामला पुनर्जीवित हो गया है। इस मामले में 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में काम हुआ और 13 अगस्त को सुनवाई होनी है। मामले में उच्च स्तर की राजनीति का हस्तक्षेप है और सूबे में भाजपा का नेतृत्व बदल चुका है। अब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री हैं जिनकी प्राथमिकताएं पिछले मुख्यमंत्री से अलग हैं। लेकिन पिछली बार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब हरिद्वार सांसद हैं। अलबत्ता यह बहुत मुमकिन है कि उनकी प्राथमिकताएं भी अब कुछ बदली हुई हों।
बहरहाल, अगला मसला यह है कि बोर्ड बनता भी है तो उसका नगर को क्या लाभ होगा। इतिहास गवाह है कि निर्दलीय रूप में जीते यशपाल राणा को 2013 से 2018 तक हर दिन संघर्ष करना पड़ा था और कार्यकाल के अंत में उन्हें न केवल जेल जाना पड़ा था बल्कि उन के चुनाव लड़ने पर छः साल का प्रतिबंध भी लगा था। उनके कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय काम निगम बोर्ड नहीं कर सका था। दूसरे मेयर गौरव गोयल जेल जाने से बच गए थे, उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध भी नहीं लगा था, लेकिन उन्हें कार्यकाल में डेढ़ साल शेष रहते पद छोड़ना पड़ा था। स्थाई प्रवृत्ति का कोई काम उनके कार्यकाल में भी नहीं हो सका था। ऐसे में सवाल यह है कि अगर कल चुनाव हो जाता है, नया बोर्ड बन जाता है तो वह किन अर्थों में पुराने बोर्डों से अलग होगा?