एम हसीन
रुड़की। बनिया राजनीति के गढ़ रुड़की रुड़की में मेयर पद इस बार पिछड़ा वर्ग की महिला के नाम आरक्षित होने की संभावना जताई जा रही है। अगर ऐसा हो जाता है तो यह नगर की बनिया राजनीति के फ्रस्टेशन का, कुंठा का, बनिया नेताओं की आपसी प्रतिस्पर्धा का चरम होगा। अन्य शब्दों में, यह पिछड़ा राजनीति को कोई सौगात नहीं होगी बल्कि बनिया नेताओं में मची आपसी मारपीट का, एक दूसरे को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने का, बड़ा लोमहर्षक उदाहरण होगा।
यूं तो सनातन काल से ही रुड़की नगर का बनिया रईस वर्ग के रूप में शुमार किया जाता रहा है लेकिन 1993 में लागू हुई उदारवादी अर्थवस्था ने जो परिवर्तन पैदा किया है उसका नतीजा यह हुआ है कि बनिया समाज में किसी एक सर्व स्वीकार्य, सर्व मान्य चेहरे का भारी अभाव पैदा हो गया है। दशकों तक नगर के राजनीतिक वातावरण में कायम रहे “बनिया वर्चस्व” को वापिस लाने की तड़प तो बिरादरी के भीतर आज भी है लेकिन पिछले दशकों में बिरादरी में कई चेहरे उभर आए हुए हैं और इनमें हर कोई यह चाहता है कि नगर में “बनिया वर्चस्व” अगर कायम हो तो उसी के दम पर कायम हो, अन्यथा न हो।
इस सोच ने कितनी दिलचस्प स्थिति पैदा कर दी है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि नगर निकाय की राजनीति में बनिया बिरादरी का जो वर्चस्व 2003 में टूट गया था, उसे 18 साल बाद गौरव गोयल ने अगर बतौर निर्दलीय मेयर पद जीतकर कायम किया भी तो वह कायम नहीं रह सका। गोयल को कार्यकाल में डेढ़ साल से अधिक का समय शेष रहते हुए पद से इस्तीफा देना पड़ा।
यही हाल विधानसभा का है। 2012 के विधानसभा चुनाव में पंजाबी बिरादरी के प्रदीप बत्रा ने कांग्रेस का टिकट हासिल किया था और भाजपा के सुरेश जैन को पराजित करने के बाद बनिया होल्ड को जीरो कर दिया था। उसके बाद प्रदीप बत्रा नगर की राजनीति के चारों ओर घूमने वाला धूमकेतु बन गए हुए हैं और उनकी स्थिति यह है कि अपनी पसंद के रूप में वे जब भी चाहते हैं, अपनी पूंछ विकसित कर लेते हैं; जैसे 2019 में उन्होंने एक बनिया गौरव गोयल को ही मेयर बना दिया था। अहम बात यह है कि बत्रा का धूमकेतु का रुतबा कम अज कम फिलहाल तक कायम है और साफ दिख रहा है कि 2024 में अगर मेयर पद अनारक्षित ही रहता है तो बत्रा फिर अपनी पसंद के किसी बनिया चेहरे को मेयर निर्वाचित करा लेंगे; फिर भले ही वह बनिया चेहरा भाजपा का हो, कांग्रेस का हो या फिर किसी निर्दलीय का हो।
इसलिए इस बार बनिया वर्चस्ववाद के व्यक्तिवादी चेहरे न तो किसी ब्राह्मण, जैसे 2003 में उन्होंने पंडित दिनेश कौशिक को चेयरमैन बनाया था, को नगर प्रमुख बनाना चाहते हैं, न किस पंजाबी, जैसे 2008 में प्रदीप बत्रा को बनाया था और फिर अपने हाथ कटा लिए थे और न ही किसी राजपूत को, जैसे 2013 में यशपाल राणा को बना लिया था, निकाय प्रमुख बनाना चाहते हैं और प्रदीप बत्रा के हाथों किसी बनिए को तो मेयर बनते देखना चाहते ही नहीं। उपरोक्त चारों ही निकाय प्रमुख निर्दलीय जीतकर बने थे। इसलिए इस बार प्रदीप बत्रा का रुतबा ध्वस्त करने के लिए उनके विरोधी बनिया वर्चस्व बाद के व्यक्तिवादी चेहरे इस बार उस बदलाव को लाने के लिए भी तैयार हैं जिसे रोकने के लिए अभी तक उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगाई हुई थी। वह बदलाव है मेयर के लिए आरक्षण लागू कराने का। संभावना जताई जा रही है कि इस बार मेयर पद आरक्षण की चपेट में आ सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह पहला अवसर होगा जब कोई पिछड़ा पुरुष या महिला रुड़की का निकाय प्रमुख निर्वाचित होगा।