फिलहाल तो महानगर संगठन पर भी दिख रहा मंगलौर विधायक का पूरा प्रभाव

एम हसीन, रुड़की। रुड़की महानगर की राजनीति पर मंगलौर विधायक और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का कितना गहरा प्रभाव है इसका अनुमान तो इसी बात से लग जाता है कि महानगर कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र चौधरी एडवोकेट यहां क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के ही अभय दान पर कायम हैं। स्थिति यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा की कुर्सी भले ही संकट में दिख रही हो, लेकिन राजेंद्र चौधरी को फिलहाल अगर सुरक्षित बताया जा रहा है तो यह क़ाज़ी निजामुद्दीन का ही प्रताप है। लेकिन बात केवल इतनी ही नहीं है। 2020 के निकाय चुनाव में रुड़की मेयर पद का चुनाव पूर्व मेयर यशपाल राणा के भाई रेशू राणा को लड़ाने में क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की निर्णायक भूमिका रही थी, यह तब साफ दिखाई दिया था। इसका एक प्रमाण यह भी है कि रेशू राणा क्षेत्र के उन वार्डों में जाकर चुनाव हारे थे जो झबरेड़ा और कलियर विधानसभा क्षेत्रों के तहत आते हैं। ध्यान रहे कि इन दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में तब हरीश रावत की लॉबी प्रभावी थी, कलियर में आज भी है, और तब हरीश रावत को यशपाल राणा का भी, क़ाज़ी निजामुद्दीन का भी और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का भी विरोधी माना गया था। यह स्थिति अब भी कायम बताई जा रही है, सिवाय इस अंतर के, कि अपने हनुमान सरीखे भक्त विधायक वीरेंद्र जाती की बदौलत अब क़ाज़ी निजामुद्दीन झबरेड़ा विधानसभा क्षेत्र में भी बेहद मजबूत हैं। ऐसे में सवाल यह है कि 2024 में जब रुड़की में मेयर पद का चुनाव होगा तो क्या यहां एक बार फिर क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का गहरा, एकतरफा, निर्णायक हस्तक्षेप होगा? अनुमान यह लगाया जा रहा है कि जब चुनाव निकट आएगा तो रुड़की भाजपा की एक लॉबी एकाएक कांग्रेस ज्वाइन कर सकती है और कोई ऐसा चेहरा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ सकता है जो एक बार पहले भी कांग्रेस का मेयर प्रत्याशी रह चुका है। तब हरीश रावत की इस मामले में क्या भूमिका रहेगी, यह देखने वाली बात होगी।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की 2019 में मजबूरी यह थी कि वे हरिद्वार लोकसभा सीट पर अपना दावा बरकरार रखते तो तब नैनीताल सीट पर के सी सिंह बाबा की अगुआई में पार्टी के भीतर उनकी विरोधी लॉबी बहुत मजबूत हो जाती। इसीलिए तब उन्होंने हरिद्वार पर दावा छोड़ना मुनासिब समझा था और खुद नैनीताल सीट पर चुनाव लड़ा था। तब हरिद्वार सीट पर कांग्रेस ने अंबरीश कुमार को प्रत्याशी बनाया था। इसका लाभ हरिद्वार में हरीश रावत विरोधी लॉबी को मिला था। तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह की अगुवाई में तमाम हरीश रावत विरोधी एक जुट हो गए थे। इनमें क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की अहम भूमिका थी, क्योंकि वे पार्टी के राष्ट्रीय हस्ताक्षर तब भी थे, मंगलौर विधायक तब भी थे। अब क़ाज़ी निजामुद्दीन की ये तमाम हैसियत बरकरार है और हरीश रावत भी हरिद्वार में वापसी कर चुके हैं। उन्होंने अपने तमाम विरोधियों को पछाड़कर अपने पुत्र वीरेंद्र रावत के लिए हरिद्वार सीट पर कांग्रेस का टिकट हासिल किया यह उनकी शक्ति का प्रमाण है लेकिन वे चुनाव हारे यह उनके विरोधी कांग्रेसियों की शक्ति का प्रमाण है। कहने का मतलब यह है कि काजी निजामुद्दीन सहित हरीश रावत विरोधी लॉबी अगर जीत के आत्मविश्वास से लबरेज है तो हरीश रावत खुद अपनों के जख्मी किए हुए शेर हैं। ऐसे में अगर क़ाज़ी निजामुद्दीन अपने किसी “संघी” मित्र को कांग्रेस में लाकर उन्हें मेयर प्रत्याशी बनाने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो क्या सिचुएशन वही बन पाएगी जो 2013 के “मेयर” चुनाव में बनी थी? देखना दिलचस्प होगा? ध्यान रहे तब हरीश रावत ने यशपाल राणा को निर्दलीय लड़ाकर मेयर निर्वाचित करा दिया था।