दरगाह प्रशासन के समक्ष बार-बार धड़ाम हो रहे हैं हाजी फुरकान अहमद के आंतरिक सड़कों के निर्माण, जल-निकासी, शौचालय निर्माण और मस्जिद मरम्मत प्रस्ताव

एम हसीन

कलियर शरीफ। यह पक्ष बनाम विपक्ष का मामला है या कुछ और है? ऐसा क्यों हो रहा है कि कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद की बरसों की कोशिश कलियर के विभिन्न निर्माण कार्यों को कराने के मामले में कामयाब नहीं हो रही है। विधायक 2019 से तीर्थ क्षेत्र की विभिन्न सड़कों के निर्माण, जल निकासी की व्यवस्था, शौचालयों के निर्माण और दरगाह मस्जिद के रुके काम को पूरा कराने के अलावा अन्य दो मस्जिदों की मरम्मत के लिए बार-बार प्रशासनिक और समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों को पत्र लिखते हैं, अधिकारी उनके प्रस्ताव के आधार पर कार्यदाई संस्था से आगणन तैयार कराते हैं और फिर मामला टांय-टांय फिस्स हो जाता है। कमाल यह है कि कार्यों के लिए किसी को पैसे की व्यवस्था नहीं करनी है। पैसा दरगाह के खातों में खूब जमा है। इसके बावजूद कलियर विधायक की बार-बार की नाकामी के कारण सवाल यह उठ रहा है कि जब राज्य में विधायकों की हस्ती को चुनौती देना किसी के लिए भी संभव नहीं है, तब कलियर विधायक आखिर किसकी हस्ती के सामने बेअसर साबित हो रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है कि उनकी संस्तुति पर काम नहीं हो रहा है?

कलियर तीर्थ क्षेत्र में सुविधाओं का अभाव है, यह *परम नागरिक* पहले भी लिखता रहा है। तीर्थाटन और पर्यटन के विकास को लेकर जो वैश्विक व्यवस्था चल रही है उसके अनुरूप केंद्र और राज्य सरकारें खूब काम करा रही हैं। पहले से स्थापित तीर्थ और पर्यटन क्षेत्रों में अधिक से अधिक तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए खूब नवाचार हो रहा है, नवनिर्माण हो रहे हैं, नई-नई योजनाएं लागू की जा रही हैं।

लेकिन कलियर में व्यवस्था ठहरी हुई है। यहां का राजनीतिक ताना-बाना भी इसमें रुकावटें डाल रहा है। मसलन, राज्य और केंद्र में सरकार भाजपा की हैं और राज्य वक्फ बोर्ड से लेकर सामान्य प्रशासन और दरगाह प्रशासन भी भाजपा का ही है। स्थानीय विधायक हाजी फुरकान अहमद कांग्रेस से हैं तो नगर पंचायत अध्यक्ष समीना बानो बसपा से हैं। क्षेत्र क्योंकि मुस्लिम बहुल है और भाजपा के लिए यहां कोई राजनीतिक गुंजाइश नहीं है इसलिए लोकसभा, विधानसभा या जिला पंचायत की राजनीति के हिसाब से भाजपा की भी यहां कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन वक्फ बोर्ड के हिसाब से भाजपा की रुचि यहां है। वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स भाजपा से आते हैं। लेकिन यह भी सच है कि कलियर क्षेत्र की व्यवस्था में वक्फ बोर्ड का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं है। हाई कोर्ट की व्यवस्था के अंतर्गत यहां वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और हरिद्वार जिलाधिकारी की दो सदस्यीय समिति दरगाह क्षेत्र की व्यवस्था देखती है।

संक्षेप यह है कि संस्तुति विधायक की हो या वक्फ बोर्ड अध्यक्ष की, उसे मंजूरी तो जिलाधिकारी और वक्फ बोर्ड सी इ ओ को ही देना होती है और अपने प्रस्तावों पर इन दोनों ही को सहमत करने में हाजी फुरकान अहमद अभी तक कामयाब नहीं हो रहे हैं। अब, जैसा कि बताया गया है, उन्होंने नवागत जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के समक्ष भी फाइल प्रस्तुत की है। देखना दिलचस्प होगा कि अब आगे क्या होता है!

इस मामले में हाजी फुरकान अहमद की विडंबना यह भी है कि उनके प्रस्तावों में तीन मस्जिदों के अधूरे कामों को पूरा कराने या उनकी मरम्मत कराने के प्रस्ताव भी हैं। अब जाहिर है कि मस्जिदों के लिए वे अपनी विधायक निधि या राज्य वित्त निधि या जिला योजना निधि से तो धन दे नहीं सकते। इसलिए उनके सामने इसके अलावा और कोई चारा नहीं बचता कि वे दरगाह के खातों में पड़ी वक्फ बोर्ड निधि से ही ये कार्य प्रस्तावित करें और उनकी दोहरी विडम्बना यह है कि इस निधि को, कम से कम फिलहाल, वे सीधे प्रभावित करने की स्थिति में भी नहीं हैं, चूंकि सरकार उनकी पार्टी की नहीं है। मुख्य विपक्ष का विधायक होने के कारण वे वक्फ बोर्ड के सदस्य भी नहीं हैं।