उमेश कुमार के बाद अब हाजी फुरकान ने कराया अपने क्षेत्र में महिलाओं से सड़क निर्माण का उद्घाटन

एम हसीन

रुड़की। कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद हरिद्वार जिले के ऐसे दूसरे विधायक बन गए हैं जिन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत सड़क का उद्घाटन संबंधित क्षेत्र में निवास करने वाली महिलाओं से कराया। इससे पहले यही काम खानपुर विधायक उमेश कुमार कर चुके हैं। यहां यह ध्यान रखने वाली बात है कि हाजी फुरकान कांग्रेस के विधायक हैं जबकि उमेश कुमार निर्दलीय हैं, जबकि महिलाओं को आगे बढ़ाने की मुहिम भाजपा, खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, चला रहे हैं।

वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शख्सियत में ऐसा कुछ है कि उनके राजनीतिक विरोधी भी उनके द्वारा खींची जा रही लकीर पर चलने को बाध्य होते हैं, उस पर अमल करने का लोभ नहीं छोड़ पाते। मसलन, नरेंद्र मोदी ने महिला वर्ग को अपना समर्थक बनाने के लिए तमाम सफल प्रयास किए। उच्च स्तर पर दूसरे दलों ने भी इसके लिए प्रयास किया और महिला वर्ग को एक अलग सामाजिक और राजनीतिक पहचान मिली। हरिद्वार जनपद में इससे पहले-पहल प्रेरणा ली खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने जब उन्होंने अपने प्रस्ताव पर कराए जाने वाले निर्माण कार्यों का उद्घाटन अपने क्षेत्र की महिलाओं से कराया। अब कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद ने भी इससे प्रेरणा ली है और उन्होंने भी अपने क्षेत्र में बनने वाली एक सड़क का उद्घाटन महिलाओं से कराया है। बहरहाल, दोनों विधायकों के इस प्रयास की सराहना की जानी चाहिए, खासतौर पर इसलिए कि उत्तराखंड सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी भी महिलाओं को सामाजिक-राजनीतिक रूप से स्वावलंबी बनाने की कवायद गंभीरता से कर रहे हैं।

महिलाओं को लेकर भाजपा या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सोच को लेकर उनके विरोधी चाहे कुछ भी कहते हों, लेकिन भाजपा के शासनकाल की कुछ सच्चाइयों को नकारा नहीं जा सकता। मसलन, महिलाओं को आरक्षण देने का प्रस्ताव सरकार केंद्र संसद में पारित भी करा चुकी है। हालांकि घोषित रूप से इस पर अमल 2029 तक के लिए टाला गया है लेकिन अघोषित रूप से इस मामले में भी काफी कुछ हो रहा है। मिसाल हाल में पाकिस्तान के खिलाफ भारत सरकार द्वारा की गई सैन्य कार्यवाही की की जा सकती है। भारत सरकार ने पाकिस्तान पर हमले की जिम्मेदारी दो महिला अधिकारियों को सौंपी और उन महिलाओं ने ही बाद में इस बाबत मीडिया को ब्रीफ भी किया। दिलचस्प यह है कि इनमें एक अधिकारी, कर्नल सोफिया कुरैशी, मुस्लिम हैं जबकि दूसरी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह, दलित समुदाय से आती हैं। भारत सरकार का यह इकलौता फैसला ही उन सारे आरोपों का जवाब है जो सरकार को चलाने वाले राजनीतिक दल पर लगाए जाते रहे हैं और उसे महिला विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी और दलित विरोधी बताया जाता रहा है।

बहरहाल, उत्तराखंड सरकार ने भी कई महत्वपूर्ण निर्णय महिलाओं को केंद्र में रखकर ही लिए हैं। उदाहरण, ऐसा पहली बार हुआ जब राज्य सरकार ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग के दो में से एक उपाध्यक्ष पद पर एक महिला को मनोनयन दिया। इसी प्रकार राज्य हज समिति में दो महिलाओं को सदस्य नामित करने का फैसला भी धामी सरकार ने ही राज्य में पहली बार लिया। जाहिर है कि जब ये लकीरें केंद्र और राज्य सरकारें खींच रही हैं तो उनसे प्रेरणा तो अन्य दलों के नेताओं को भी लेना ही पड़ेगी अन्यथा एक खास, महिला, समुदाय में उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ेगी।