पिछले तीन चुनाव में कोई तोड़ नहीं पाया हाजी फुरकान का वर्चस्व
एम हसीन
रुड़की। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कलियर विधानसभा क्षेत्र में मुनीश सैनी वे अकेले भाजपा प्रत्याशी रहे हैं जो यहां पार्टी को तीसरे स्थान से उठा कर दूसरे स्थान पर लाए थे। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि 2022 का यह विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा में मुनीश सैनी का रुतबा बढ़ा ही है। वे कलियर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का चेहरा भी अभी भी बने हुए हैं। इससे यह तो लगता है कि उन्हें 2027 में भी यहां पार्टी का टिकट मिलने की उम्मीद है। लेकिन यह दावा करने की स्थिति में कोई नहीं है कि अगर उन्हें ही टिकट मिलता है तो वे इस बार सक्सेस चैलेंजर बन जाएंगे, अर्थात मौजूदा स्थानीय कांग्रेस विधायक हाजी फुरकान अहमद का वर्चस्व वे तोड़ पाएंगे।
कलियर विधानसभा सीट 2008 में अस्तित्व में आई थी और 2012 में यहां पहला विधानसभा चुनाव हुआ था। तब भाजपा ने यहां श्यामवीर सैनी को अपना प्रत्याशी बनाया था। तब यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस के हाजी फुरकान और बसपा के हाजी शहजाद के बीच हुआ था। हाजी फुरकान विजयी हुए थे। 2017 में यहां भाजपा ने जय भगवान सैनी को प्रत्याशी बनाया था। तब एक बार फिर मुख्य मुकाबला कांग्रेस के हाजी फुरकान और निर्दलीय हाजी शहजाद के बीच हुआ था। हाजी फुरकान विजयी हुए थे। 2022 में भाजपा ने एक बार फिर चेहरा बदला था और मुनीश सैनी को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में यहां हाजी शहजाद मैदान में नहीं थे और बसपा के सुरेंद्र सिंह सैनी प्रभावी साबित नहीं हुए थे। नतीजे के तौर पर यहां मुनीश सैनी एक पायदान ऊपर सरक कर दूसरे नंबर पर आ गए थे लेकिन जीत हाजी फुरकान की ही हुई थी।
कलियर विधानसभा सीट पूर्ण रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली सीट है जहां नगर पंचायतें भले ही चार हैं लेकिन इसका परिवेश ग्रामीण ही है। वैसे यह अल्पसंख्यक बहुल सीट है लेकिन बहुसंख्यक मतदाताओं में मुख्य आबादी यहां सैनी बिरादरी के गांवों की ही है। वैसे भी सैनी बिरादरी को कट्टर भाजपा समर्थक बिरादरी माना जाता है। इसी कारण किसी सैनी को ही यहां प्रत्याशी बनाना भाजपा की मजबूरी है लेकिन सैनी बिरादरी की यह भी मजबूरी है कि वह किसी अन्य बिरादरी या समाज को व्यापक रूप से अपने साथ नहीं जोड़ पाती। इसी कारण यह ऐसी सीट के तौर पर उभरकर सामने आती रही है जहां हाजी फुरकान तो भाजपा के ही वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब रहते हैं जबकि भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस या बसपा के जनाधार में तो घुसपैठ कर ही नहीं पाता, अपने या अपनी पार्टी के जनाधार को भी निर्णायक रूप से नहीं सम्भाल पाता। बहरहाल, मुनीश सैनी ने पिछली बार हाजी शहजाद की गैर-मौजूदगी का लाभ उठाकर अपना एक नंबर तो बढ़ाया था लेकिन यह गारंटी करने की स्थिति में वे अब भी नहीं हैं कि इस बार अगर उन्हें टिकट मिल भी गया तो वे अपने ग्राफ को निर्णायक स्टेज तक ले जा पाएंगे!