गुर्जर समुदाय पर पहले ही चढ़ चुका है चैंपियन का रंग

एम हसीन

रुड़की। खानपुर विधासभा क्षेत्र में कांग्रेस समेत किसी दूसरे दल के लिए हालात साजगार हो पाएंगे ऐसा फिलहाल, फिलहाल लगता नहीं। जो हालात पिछले तीन महीने से यहां जारी हैं उन्होंने चाहे-अनचाहे ऐसी परिस्थितियां उकेर दी हैं कि यहां के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के लिए कहीं कोई समस्या आती नजर नहीं आती और, अगर भाजपा उन्हें टिकट देकर उन्हें मैदान में उतारती है तो, पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन यहां किसी भी सूरत कमज़ोर नहीं हैं। 2027 के विधानसभा चुनाव से पौने दो साल पहले, फिलहाल दिलचस्प स्थिति यहां यह नजर आ रही है कि शायद बसपा भी यहां अपनी उपस्थिति का अहसास न करा पाए। कांग्रेस तो खैर यहां न 2017 में थी और न ही 2027 में।

जैसा कि सब जानते हैं कि खानपुर के पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन हाल में करीब दो महीने की जेल काटकर आए हैं। किसी के लिए भी जेल जाना न केवल अच्छी बात नहीं होती बल्कि तकलीफदेह भी होती है। चैंपियन के साथ भी शायद ऐसा ही रहा हो, लेकिन उन्हें इसका लाभ भी भरपूर मिला है। स्थिति यह है कि जिन चैंपियन को भाजपा ने 2022 में अपना टिकट नहीं दिया था और उनकी पत्नी रानी देवयानी को भाजपा ने टिकट दिया भी था तो उन्हें गुर्जरों ने ही हरा दिया था वहीं चैंपियन आज अमेरिका-इंग्लैंड तक के गुर्जरों के बीच लोकप्रिय हो चुके हैं। 2022 से पहले जिन चैंपियन के राजा होने को झबरेडा से प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बाकायदा चुनौती दी जाती थी उन्हें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली तक के गुर्जरों ने राजा मान किया है। जिस “रंग महल” को चैंपियन अपने जीवनभर के प्रयासों के बावजूद “गुर्जर आस्था का केंद्र” नहीं बना पाए थे, उस असंभव काम को उमेश कुमार की एक रंगमहल विजिट ने कर दिया। आज स्थिति यह है कि गुर्जर समुदाय एक जुट है और चैंपियन के साथ नजर आ रहा है। इस हकीकत को उत्तराखंड की राजनीतिक हकीकत भी समझ रही है। वैसे चैंपियन के तरीकों से भी लगता है कि वे इस चीज को मेंटेंन रखना चाहते हैं। जेल से आने के बाद वे गुर्जरों द्वारा किए जा अपने सम्मान और अभिनंदन समारोहों में लगातार जा रहे हैं, बयान दे रहे हैं लेकिन संयमित रूप से। दूसरी ओर वे भाजपा के किसी भी गुट को उकसाने का काम भी नहीं कर रहे हैं।

दूसरी ओर स्थिति उमेश कुमार की है। उमेश कुमार को 2022 में खानपुर में 40 हजार वोट मिले थे लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जब वे प्रत्याशी के रूप में सामने आए थे तो उनका ग्राफ 16 हजार पर आ गया था। 2027 में अगर खानपुर में सीधा मुकाबला होता है और आज के समीकरणों पर ही होता है तो उमेश कुमार को 40 हजार से भी अधिक वोटों की जरूरत होगी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें मुख्य रूप से ब्राह्मणों पर निर्भर करना पड़ेगा। उनके लिए अच्छी बात यह है कि जिस घटनाक्रम ने चैंपियन को गुर्जरों के बीच पुनर्स्थापित किया है उसी घटनाक्रम ने उमेश कुमार को भी ब्राह्मणों के बीच स्थापित किया है। यह भी संयोग है कि इस क्षेत्र में जितना वोट गुर्जरों का है कमोबेश उतना ही ब्राह्मणों का भी है। बाकी बचे वोटों में एक बड़ा भाग मुसलमानों का है। अगर यहां सीधे मुकाबले के हालात बनते हैं तो मुसलमानों के पास वैसे भी उमेश कुमार के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। लेकिन उमेश कुमार मुसलमानों के सामने कोई और विलाप खुलने भी नहीं देना चाहते। इस मामले में उनके भाग्य से यह भी छींका टूटा कि मदरसा सील अभियान के तहत सरकार ने खानपुर क्षेत्र के जो अपंजीकृत मदरसे सील किए उनकी चपेट में ढंडेरा का एक पंजीकृत मदरसा भी आ गया। उमेश कुमार ने इसके लिए संघर्ष किया और उसे खुलवा दिया। नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों के बीच अगर उनका ग्राफ गिरा भी होगा तो वह फिर ऊपर उठ गया। ऐसे चाहे विधायक रमजान में रोजा अफ्तार से परहेज करते दिखाई दिए हों लेकिन उमेश कुमार ने अपने विधानसभा क्षेत्र में इस कार्ड को खुलकर खेला। जाहिर है कि वे यह सब रणनीतिक रूप से ही कर रहे हैं इसका नतीजा भी हासिल कर रहे हैं।

उमेश कुमार का सौभाग्य यह है कि कांग्रेस और भाजपा में उनके जो हिमायती 2022 में थे वे आज भी कायम हैं और चैंपियन का ड्रा बैक यह है कि कांग्रेस और भाजपा में उनके जो विरोधी 2022 में थे, वे आज भी कायम हैं। यही वह फैक्टर है जो यहां का 2022 का राजनीतिक संघर्ष तय करेगा। लेकिन इतना तय है कि अगर चैंपियन भाजपा में टिकट की लड़ाई हारे तो चुनाव में मुश्किल उमेश कुमार के सामने भी आएगी। यहां की स्थिति ही ऐसी है कि एक के ऊपर ही दूसरे की निर्भरता है।