पूर्व सांसद की उंगलियों में सिमट आई सूबे की तमाम राजनीति

एम हसीन

रुड़की। क्या गजब की बात है कि डॉ रमेश पोखरियाल निशंक न हरिद्वार सांसद हैं, न किसी स्थानीय सीट से विधायक हैं, न भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं और न ही राज्यसभा के सदस्य हैं। इसके बावजूद कम से कम हरिद्वार संसदीय क्षेत्र की भाजपा की राजनीति की वे की-फिगर हैं, निर्णायक शक्ति हैं। बात चाहे निकायों में आरक्षण लागू करने की हो, चाहे निकाय प्रत्याशी तय करने की, चाहे संगठन के चुनाव की हो या हरिद्वार को लेकर अन्य नीतिगत या प्रशासनिक निर्णय लिए जाने की; हो वही रहा है जो डॉ निशंक चाह रहे हैं। और तो और, कम से कम हरिद्वार क्षेत्र में तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का दौरा भी डॉ निशंक की उपस्थिति के बगैर मुश्किल से ही हो पाता है।

यही दरअसल डॉ निशंक की सामर्थ्य का प्रमाण है। सामर्थ्य यह कि उनके भीतर धैर्य तो कमाल का है ही, परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने की संघर्ष क्षमता भी कमाल की है। राजनीतिक रूप से जारी परिस्थितियों पर निगाह रखकर उन्हें समझने और उनमें अपने लिए सही भूमिका का चयन करने की उनकी क्षमता भी कमाल है। यही वह चीज है जो उन्हें पिछले तीन दशकों से राजनीति में न केवल कायम रखे हुए है बल्कि प्रासंगिक भी बनाए हुए है।

अगर उनके इतिहास की बात करें तो, अभी पिछले साल तक की ही बात है जब डॉ निशंक हरिद्वार सांसद हुआ करते थे। इतिहास में थोड़ा सा और पीछे लौटें तो, 3 साल पहले वे केंद्र सरकार में शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री हुआ करते थे। थोड़ा और पीछे जाएं तो 2011 तक वे सूबे के मुख्यमंत्री थे। वैसे अपने राजनीति करियर में वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं और वहां की कैबिनेट में मंत्री भी। लेकिन कम से कम आज का उनका राजनीतिक पोर्टफोलियो वही है जो ऊपर बताया गया है। अर्थात उनके पास पार्टी की कोई घोषित जिम्मेदारी नहीं है। ऐसा पहले भी होता आया है। 2012 में मुख्यमंत्री पद का संघर्ष हारने के बाद 2014 में लोकसभा टिकट मिलने तक वे कमोबेश ऐसी ही स्थिति में रहे थे, जैसी स्थिति उनकी आज है। तब तो और भी बुरे हालात थे क्योंकि तब भाजपा भी न राज्य की सत्ता में थी और न केंद्र की सत्ता में। फिर भी उन्होंने वापसी की थी और मोदी सरकार की शिक्षा नीति को लागू करने का श्रेय हासिल किया था।

बात केवल इतनी सी है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और हरिद्वार सांसद-पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच 36 का आंकड़ा है। हरिद्वार संसदीय क्षेत्र के सबसे शक्तिशाली विधायक मदन कौशिक के साथ भी मुख्यमंत्री का यही समीकरण है। एक ओर यह स्थिति है, दूसरी ओर, त्रिवेंद्र सिंह रावत-मदन कौशिक युति के साथ डॉ निशंक के रिश्ते भी सहज नहीं हैं। ऐसे में सहज ही डॉ निशंक मुख्यमंत्री के पाले के आदमी बन जाते हैं। यही वह समीकरण है जो हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में डॉ निशंक को प्रासंगिक बनाता है और यही वह संतुलन है जो डॉ निशंक कायम किए हुए हैं। उनकी इन क्षमताओं के कारण उन्हें लेकर लगाया जा रहा यह कयास गलत नहीं है कि कल वे राज्य भाजपा के प्रमुख भी हो सकते हैं । ध्यान रहे कि अभी तक वे कभी संगठन की राजनीति में पार्टी के प्रदेश प्रमुख नहीं रहे हैं।