आमजन की बात कहने वाली केवल श्रेष्ठा राणा ही हैं
एम हसीन
रुड़की। मेयर चुनाव के प्रचार के बीच जनता के स्तर पर जबरदस्त वैचारिक मंथन देखने में आ रहा है। चूंकि यह स्थानीय चुनाव है तो इसमें प्रत्याशियों के चयन से लेकर उनके चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों तक पर जनता की गहरी नजर है। इस बात को खास दिलचस्पी के साथ देखा और इसका संज्ञान लिया जा रहा है कि एक निर्दलीय प्रत्याशी, जिसे जनता का समर्थन मिलता हुआ साफ दिखाई दे रहा है, को मात देने के लिए राजनीतिक दल किस हद तक जा रहे हैं!
उदाहरण के तौर पर कांग्रेस को देखा जा सकता है। कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी वीरेंद्र रावत, कई अन्य प्रदेश पदाधिकारियों के अलावा सहारनपुर के पार्टी सांसद क़ाज़ी इमरान मसूद चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं। साथ ही पूरा जिला संगठन भी अपना योगदान दे रहा है। पार्टी प्रत्याशी धनपति हैं यह जनता को कांग्रेस हाई कमान के पास पूछने जाने की जरूरत नहीं है। पार्टी प्रत्याशी के संसाधनों का एक्सपोजर प्रचार में आम दिखाई दे रहा है और जनता उसे देख रही है। दूसरी ओर भाजपा का चुनाव अभियान है। पार्टी के दो राजसभा सांसद, एक लोकसभा व एक पूर्व लोकसभा सांसद, दो कैबिनेट मंत्री, एक पड़ोसी राज्य का कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व कैबिनेट मंत्री, दो विधायक, एक वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष, तीन पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष, तीन पूर्व जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष और पूरा जिला संगठन, सभी प्रकोष्ठ, सभी आनुषंगिक संगठन चुनाव प्रचार में अपना योगदान दे रहे हैं। पार्टी प्रत्याशी धनपति है यह चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों से ही दिखाई दे रहा है।
दोनों दलों से जनता का एक ही सवाल होता सुनाई दे रहा है कि उनके प्रत्याशियों में जनता का प्रतिनिधि कौन है? ऐसा कौन है जो रेहड़ी वाले, ठेली वाले, फेरी वाले, खोमचे वाले, सड़क के किनारे फड़ लगाकर समान बेचने वाले, रिक्शा, टेम्पो, छोटा हाथी, चालक, बुग्गी चलाने वाले की दिक्कत को जानता या समझता है? कौन है जो मुहल्ले के छोटे दुकानदार की, जूता गांठने वाले की, कचरा चुनने वाले की; यहां तक कि भीख मांगकर गुजारा करने वाले की दिक्कत को जानता है? सवाल यह उठ रहा है कि दोनों में से ऐसा कौन है जो किसी जन-समस्या को लेकर सड़क पर आने की स्थिति में हो? ऐसा कौन है जो किसी आपदा की स्थिति में, किसी सामूहिक या व्यक्तिगत दिक्कत की स्थिति में किसी काम आ सकता हो? यह खासी कमाल की बात है कि दोनों ही प्रत्याशी प्रकारांतर से यह यह स्वीकार करने से नहीं चूकते कि टिकट के मामले में ही नहीं बल्कि पार्टी को अपने प्रचार अभियान में झोंक देने की उनकी एकमात्र योग्यता यही है कि वे धनपति हैं। सवाल यह है जब स्थानीय चुनाव में भी पार्टियां अपना हस्तक्षेप करेंगी तो जनता के पास इसके अलावा क्या विकल्प है कि वह अपने दुख-दर्द को समझने वाले निर्दलीय को चुन ले! क्यों न वह श्रेष्ठा राणा को चुन ले।