फिलहाल रुड़की भाजपा जिलाध्यक्ष पद पर कर रहे हैं कार्य

एम हसीन

रुड़की। रुड़की भाजपा संगठन की अगुवाई कर रहे शोभाराम प्रजापति उन भाजपाईयों में एक हैं जिन्हें भाजपा ने बहुत कुछ दिया है। उन्हें पहले राज्यमंत्री बनकर रखा था और फिर अब संगठन का प्रमुख बनाया हुआ है। अगर मेयर पद पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित होता तो शोभाराम प्रजापति पार्टी मेयर टिकट के सबसे प्रबल दावेदारों में एक होते। वे नगर में निवास करते हैं और उस प्रजापति समुदाय से आते हैं जिसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा का कट्टर समर्थक माना जाता रहा है। अब उनकी नेतृत्व क्षमता कसौटी पर है। अगर पार्टी का मेयर चुनाव परिणाम अपेक्षाकृत नहीं रहा तो यह अपने आप में इस बात का प्रमाण होगा कि शोभाराम प्रजापति की नेतृत्वक्षमता उतनी प्रभावशाली नहीं है जितनी आंकी जा रही है।

वैसे शोभाराम प्रजापति पर केवल रुड़की ही नहीं बल्कि कलियर, इमलीखेड़ा, भगवानपुर, पाडली, रामपुर, झबरेड़ा, मंगलौर, लढ़ौरा और ढंढेरा में भी बेहतर परिणाम देने की जिम्मेदारी है। इस मामले में पार्टी नेतृत्व की इच्छा के अनुसार उन्होंने रणनीतिक फैसले किए हैं। क्योंकि उपरोक्त लगभग सारे ही निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिम बहुल हैं इसलिए पार्टी ने मंगलौर, कलियर और लंढौरा में अपने प्रत्याशी नहीं दिए हैं। रामपुर व पाडली में मुस्लिम प्रत्याशी दिए हैं और झबरेडा, ढंढेरा, भगवानपुर व इमलीखेड़ा में क्षेत्र के समीकरण के हिसाब से प्रत्याशी तय किए हैं। इन सब क्षेत्रों में प्रत्याशियों के अभियान की कमान स्थानीय लोगों को दी गई है। शोभाराम प्रजापति जिलाध्यक्ष होने के नाते केवल पार्टी के फैसले और नीतियों को लागू करने के लिए जवाबदेह हैं। लेकिन बात उनके अपने समर्थन की भी है।

शोभाराम प्रजापति की अपनी बिरादरी क्षेत्र में एक बड़ा वोट बैंक है। रुड़की महानगर क्षेत्र में भी उनकी प्रभावी संख्या है। सवाल यह है कि क्या यह संख्या मतपेटियों में गिनी जाएगी? गिनी जाएगी तो क्या इनका समर्थन भाजपा के ही पक्ष में जाएगा? 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम बताता है कि ऐसा ही होगा। 2022 के विधानसभा चुनाव का परिणाम बताता है कि ऐसा आंशिक रूप से होगा लेकिन 2019 के मेयर चुनाव का परिणाम बताता है कि शायद ऐसा न हो। ध्यान रहे तब भाजपा के मेयर प्रत्याशी को महज 19 हजार वोट मिले थे और कांग्रेस के रेशु राणा को करीब 27 हजार। चुनाव परिणाम निर्दलीय गौरव गोयल के नाम गया था जिन्हें करीब 30 हजार वोट मिले थे। तब जिला नेतृत्व शोभाराम प्रजापति के हाथ में नहीं था लेकिन अब है। यह भी सच है कि पार्टी ने एक खास वर्ग की भावना का ख्याल करते हुए मेयर का वैश्य प्रत्याशी दिया है। सवाल यह है कि शोभाराम प्रजापति का सजातीय वर्ग किसे चुनेगा? भाजपा के वैश्य प्रत्याशी को? या कांग्रेस के वैश्य प्रत्याशी को? या फिर किसी और को ही? जाहिर है कि इसी पर शोभाराम प्रजापति का भविष्य भी निर्भर करेगा। लेकिन यह भी है कि अगर भाजपा का मेयर बना तो सेहरा शोभाराम प्रजापति के सिर भी बंधेगा, काम उनके समुदाय के भी होंगे।