बाकी नगर में होती नजर नहीं आ रही है किसी प्रकार की राजनीति

एम हसीन

रुड़की। पिछले 16 सालों से नगर के राजनीतिक फलक पर झंडा गाड़े बैठे नगर विधायक प्रदीप बत्रा की कार्यशैली को प्रदेश कांग्रेस महासचिव सचिन गुप्ता ने लगता है कि बेहतर तरीके से स्टडी किया है। उन्होंने इस बात को बेहतर तरीके से समझा है कि जनता के काम पर प्रदीप बत्रा का दफ्तर जो करता हो सो करता हो, खुद प्रदीप बत्रा ज्यादा कुछ नहीं करते सिवाय मुख्यमंत्री राहत कोष के चेक वितरित करते हुए फोटो खिंचवाने के या फिर अपने या सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों, उद्घाटनों के फीते काटते हुए फोटो खिंचवाने के अलावा। खासतौर पर पुलिस के महकमे प्रदीप बत्रा आमतौर सिफारिश नहीं करते। ठीक इसी प्रकार सामाजिक विवादों के फैसले वे आमतौर पर नहीं कराते।

इसका कारण भी है। बत्रा के पास समय ही नहीं है। वे अपने कारोबार और अपनी संपत्ति के विस्तार में इतना व्यस्त हैं कि उनके लिए समय निकालना ही मुश्किल है। अहमियत इस बात की है सामाजिक रूप से इन कमियों को सचिन गुप्ता पूरा कर रहे हैं, दूर कर रहे हैं, लोगों की जरूरत पूरा कर रहे हैं। वे पुलिस में ही नहीं बल्कि राजस्व विभाग में, सामान्य प्रशासन में, एच आर डी ए में, नगर निगम में; हद यह है कि पर्यटन आदि विभागों में भी लोगों के अटके काम करा रहे हैं। बैंकों में लोगों के काम करा हैं। उद्योग विभाग, रोजगार विभाग, लोन विभाग में काम करा रहे हैं। वे समाज में पैसे या संपत्ति या रिश्ते नातों से जुड़े लोगों के विवाद निपटाने के लिए अपना भरपूर समय दे रहे हैं। यह कमाल है कि कारोबारी सचिन गुप्ता भी कम नहीं हैं, बल्कि प्रदीप बत्रा से ज्यादा ही हैं, ज्यादा बड़े हैं। लेकिन जब सवाल जनता के काम का है तो वे अपने कारोबार को पीछे कर दे रहे हैं या फिर वे अपने कारोबार की जिम्मेदारी दूसरे कारोबारियों के ऊपर छोड़ दे रहे हैं और खुद को जनता के लिए स्पेयर कर दे रहे हैं। मिसाल इस बात की दी जा सकती है कि उन्होंने हाल ही में नगर के होटल लोटस को टेक ओवर करते हुए उसे अपनी सचिन इंटरनेशनल होटल चेन का हिस्सा तो बनाया है, लेकिन साथ ही बकौल उन्हीं के, उन्होंने यह होटल चलाने के लिए किसी और कारोबारी के सुपुर्द कर दिया है। मकसद यही है कि वे जनता के काम के लिए ज्यादा से ज्यादा समय स्पेयर कर सकें। जाहिर है कि इसी कारण उनके पास लोगों की भीड़ बढ़ रही है, उनकी स्वीकार्यता समाज में बढ़ रही है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव तो उनके अपने वैश्य समाज के भीतर ही दिखाई दे रहा है। वैश्य बंधु जो कांग्रेस के नाम पर किसी को, वैश्य बंधु तक को स्वीकार नहीं करते वे सचिन गुप्ता को हाथों हाथ ले रहे हैं, उन्हें पूरे समर्थन का भरोसा दिला रहे हैं। कारण यही है कि अपने समाज के भीतर के कितने ही विवाद हैं जो सचिन गुप्ता के प्रयासों से निपटे हैं।

फिर सचिन गुप्ता के हौसले कमाल के हैं। हाल के वर्षों में जो राजनीति शुरू हुई है उसके मद्देनजर मुस्लिम समुदाय का वोट तो कांग्रेस के हर नेता को चाहिए; कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं की सारी राजनीति ही मुस्लिम वोटों की बदौलत चलती आ रही है, लेकिन मुस्लिम समाज के साथ अपने आपको सार्वजनिक कोई नहीं करना चाहता, उनके साथ फोटो कोई नहीं खिंचवाना चाहता। यहां तक कि मुस्लिम राजनीतिज्ञ भी इन कामों से परहेज ही कर रहे हैं। कोविड़ काल में यशपाल राणा ने मुस्लिम लोगों की बहुत मदद की थी, लेकिन की थी मुस्लिम चेहरों की मार्फत चुपचाप ही। हिंदू वोटों के बिदक जाने का खतरा था। लेकिन सचिन गुप्ता इस काम को भी खुलकर कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कलियर उर्स के दौरान उन्होंने सूफी राशिद के कार्यक्रम जश्न ए बाबा फरीद की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी अपने होटल में अपनी शिरकत के साथ कराई और कार्यक्रम को संरक्षण भी खुलकर दिया। वे मुहर्रम के जुलूस की पगड़ी आम पहनते देखे जाते रहे हैं।

सचिन गुप्ता ने एक और चीज प्रदीप बत्रा से सीखी है। जैसा कि सब जानते हैं कि प्रदीप बत्रा ने जोखिम ले कर सफलता पाई है और अपनी राजनीति के लिए चंदा किसी से लिया नहीं। इसी राह पर सचिन गुप्ता चल रहे हैं। वे अपने किसी काम के लिए किसी से कोई आर्थिक सहायता नहीं ले रहे हैं। दोनों के बीच बड़ा अंतर यह भी है कि जहां प्रदीप बत्रा पर आरोप लगते रहे हैं कि वे लोगों से पैसे उधार लेकर या धंधे में लगवाकर उनका पैसा मार लेते हैं; ऐसे आरोपों से सचिन गुप्ता बरी हैं। उन पर अभी तक किसी ने पैसे मार लेने का आरोप नहीं लगाया है। ये सारी चीज़ें सचिन गुप्ता को सियासी कार्यकर्ता और सामाजिक चेहरे के रूप में पेश कर रही हैं जबकि प्रदीप बत्रा को कारोबारी के रूप में।