अब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी की जांच समिति के गठन की मांग

एम हसीन

देहरादून। उत्तराखण्ड नया बना सूबा है। अभी तक का इतिहास यही है कि यहां मुख्यमंत्री के खिलाफ संघर्ष चलते ही रहे हैं। भुवन चंद्र खंडूरी को हटवाकर डा रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बने थे तो खंडूरी भी चुके नहीं थे। उन्होंने दो साल बाद ही हिसाब बराबर कर लिया था। फिर विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत ने ताज पहना था तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के हटने के बाद सत्ता तीरथ सिंह रावत के हाथ से होती हुई पुष्कर सिंह धामी के हाथ आई थी। ऐसे में कोई ताज्जुब की बात नहीं कि अगर धामी के खिलाफ भी कोई मुहिम चलती रही हो।

बहरहाल, सूबे में सत्ता को लेकर पैदा हुआ ताजा भीतरी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। निर्दलीय विधायक उमेश कुमार द्वारा सदन के भीतर उल्लेखित किए गए सरकार गिराने के कथित षड्यंत्र को लेकर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा इस मामले की जांच के लिए समिति का गठन करने की मांग के बीच अब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत ने भी इसमें अपनी हाजिरी दर्ज करा दी है। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाते हुए स्पीकर से ही यह मांग कर डाली है कि चूंकि मामला सदन के भीतर का है इसलिए स्पीकर ही इस पर समिति का गठन करने की पहल करें। हालांकि आधुनिक दौर के चौथे पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की ओर से अभी तक इस मामले में कोई पहल नहीं की गई है। मुद्दे पर आगे चर्चा करने से पहले इसकी पृष्ठभूमि को थोड़ा जान लिया जाए। राज्य के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने सम्पन्न गैरसैण विस सत्र के दूसरे दिन आरोप लगाया था कि राज्य की मौजूदा पुष्कर सिंह धामी सरकार को गिराने के लिए षड्यंत्र रचा जा गया था। उन्होंने षड्यंत्र के लिए देहरादून के उन गुप्ता बिल्डर्स को आरोपित किया था जो राजधानी के ही बिल्डर साहनी आत्महत्या मामले में जेल में हैं। गुप्ता बंधुओं को पहले से ही राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कारोबारी बताया जाता रहा है और उनका पोर्टफोलियो पहले से विवादित चला आ रहा है। लोक सभा चुनाव के तत्काल बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गुप्ता बंधुओं के संबंध में अपनी ओर से स्पष्टीकरण प्रस्तुत करके यह बहस खत्म कर दी थी कि राजनीति में गुप्ता बंधुओं का संरक्षणदाता किसे बताया जा रहा है। उमेश कुमार ने सदन के तीसरे और अन्तिम दिन राज्य की विभिन्न परियोजनाओं में हुए कथित भ्रष्टाचार को लेकर लंबा वक्तव्य दिया था और जिन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में यह सब हो रहा था उन्हें उमेश कुमार ने बिना नाम लिए आरोपित किया था। ऐसे में तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा जांच समिति गठित करने की मांग को आश्चर्यजनक नहीं माना जा सकता। वैसे उत्तराखण्ड नया गठित हुआ राज्य है और सब जानते हैं कि यहां मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की परंपरा है। यही कारण है कि यहां चाहे किसी मुख्यमंत्री को हटाया जाने का विचार भी पार्टी का हाईकमान न कर रहा हो लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं चलती ही रहती हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि इससे सरकार के कामकाज पर भी फर्क पडता है और मुख्यमंत्री की मनोस्थिति भी प्रभावित होती ही है। यही काम फिलहाल उमेश कुमार ने किया हुआ है।