एक ध्रुवीय हुई नगर की राजनीति में चेरब जैन की कथित “समाजसेवा”

एम हसीन

रुड़की नगर में राजनीति करने के लिए स्पेसिफिक मंच हैं। जब राजनीतिक दल हैं तो उनके मंच भी हैं। लेकिन ऐसे भी तमाम मंच हैं जो हों भले ही सामाजिक या राजनीतिक हों लेकिन जहां राजनीति को पहचान दी जाती है, उसे घड़ा जाता है, उसे व्यवस्थित किया जाता है। फोनिक्स ग्रुप के करता धरता चेरब जैन, सच है कि राजनीतिक मंचों पर नहीं बल्कि ऐसे ही सामाजिक धार्मिक मंचों पर ही नजर आ रहे हैं। इसी कारण जब उनसे उनकी सक्रियता के विषय में पूछा जाता है तो वे इसे राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक मानते हैं। अगर वे सच बोल रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि वे हालत से पूरे तौर पर वाकिफ नहीं हैं। पूरी सच्चाई यह कि 2017 में उनके दादा सुरेश जैन ही चुनाव नहीं हारे थे बल्कि उनका पूरा ग्रुप चुनाव हारा था। सुरेश जैन के सारे वफादारों की समाई नगर विधायक प्रदीप बत्रा के कैंप में हो गई हो, ऐसा नहीं है। बहुत लोग हैं जो सही वक्त, सही चेहरे का इंतजार कर रहे हैं। ये लोग चेहरे के सामने आने का इंतजार ही नहीं कर रहे बल्कि चेहरे तलाश भी रहे हैं, चेहरे घड़ भी रहे हैं। अगर ऐसे ही चेहरों में एक चेहरा चेरब जैन का भी हो तो फिर वे क्या कहेंगे? खास तौर पर जब नगर की राजनीति एक नए रंग में नजर आ रही है। क्या नया रंग?

जानिए कि निकाय चुनाव की पूर्व संध्या पर नगर की राजनीति एक ध्रुवीय हुई खड़ी है। निकाय चुनाव के दृष्टिकोण से नगर में केवल एक चेहरा नजर आ रहा है और वह है कांग्रेस महासचिव सचिन गुप्ता का। फिलहाल ऐसा कोई चेहरा फिलहाल कांग्रेस में भी नहीं है जो सचिन गुप्ता के बराबर ही सक्रिय हो और फिर पार्टी टिकट की दौड़ में उनके समानांतर दौड़ रहा हो अथवा जनता के स्तर पर सचिन गुप्ता की हैसियत को चुनौती देता हुआ दिखाई देता हो।दूसरी ओर भाजपा में स्थिति और भी अधिक खराब है। जैसा कि पार्टी की परंपरा है; वहां सैकड़ों की संख्या में पदाधिकारी और हजारों की संख्या में कार्यकर्ता हैं जो दिन रात पार्टी के काम में जुटे हुए हैं। वहां मेयर टिकट के भी दर्जन भर से ज्यादा दावेदार हैं लेकिन न तो किसी का अभियान टिकट पर फोकस्ड है और न ही नीचे से, आम आदमी के पास से किसी की आवाज नहीं आ रही है, किसी का नाम नहीं लिया जा रहा है। दरअसल, नगर की राजनीति का रूप ही ऐसा है कि यहां उसी के नाम का चर्चा होता है जो समाजसेवा के नाम पर रोज मजमा लगा सके और मीडिया में बयान दे सके। जो सामान्य काम काज के या पार्टी निष्ठा के आधार पर टिकट की इच्छा रखे वह टिकट तो पा जाता है लेकिन बाकी कुछ वह तय नहीं कर पाता।

बहरहाल, 2008 के बाद से ही निकाय चुनाव को लेकर हमेशा जागरूक रहने वाली शख्सियत हैं नगर भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा जो या तो खुद लड़ते रहे हैं या किसी को लड़ाते रहे हैं। लेकिन इस बार वे शांत हैं। उनकी मुहर किसी भाजपाई के नाम पर नहीं है। ऐसे में अब स्थिति यह है कि जाहिरा तौर पर प्रदीप बत्रा पूरे तौर पर शांत हैं जबकि सचिन गुप्ता पूरे तौर पर सक्रिय हैं। फिर जाहिर है कि नगर की राजनीति तो एक ध्रुवीय दिखेगी ही और उसमें बेचैनी भी होगी ही। यह बेचैनी इसलिए भी है कि अगर मेयर सीट सामान्य रहती है और कोई भी अगड़ा चेहरा सचिन गुप्ता की राजनीतिक स्वीकार्यता को चुनौती देने के लिए आगे नहीं आता है तो फिर कोई पिछड़ा चेहरा आगे आएगा। आखिर लोकतंत्र में मतों का विभाजन होना लाजमी है। इसलिए कोई तो भाजपा के टिकट पर भी आयेगा और कोई सचिन गुप्ता को चुनौती देने के लिए भी आयेगा। इसी बेचैनी के जवाब के तौर पर हाल की स्वामी यतीश्वरानंद की दहाड़ को भी देखा जा सकता है और इसी के जवाब के तौर पर फोनिक्स ग्रुप ऑफ एजुकेशन के करता धरता चेरब जैन को भी देखा जा सकता है। स्वामी यतीश्वरानंद की उपस्थिति उन बेहद प्रभावशाली पिछड़े नेताओं के लिए जवाब हो सकता है जो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कब मेयर पद आरक्षित घोषित हो और कब वे अपनी दावेदारी को आगे लाएं। यह भी अहम है कि ऐसे पिछड़े दावेदार मुख्य रूप से भाजपा में ही हैं।

दूसरी ओर चेरब जैन हैं। उनका तो नगर की राजनीति में कई स्तरों पर लाभ उठाने की कोशिश हो रही हो सकती है अर्थात, बहुत मुमकिन है कि वे भाजपा में ही मेयर टिकट मांगें या फिर जरूरत पड़ने पर वे कांग्रेस में सचिन गुप्ता के ही टिकट को चुनौती दे डालें। और तो और हो तो यह भी सकता है कि दोनों ही पार्टियों में टिकट न मिलने की स्थिति में उन्हें निर्दलीय भी लड़ा दिया जाए, जैसा कि नगर की परंपरा है। यह चेरब जैन के चेहरे के मल्टी पर्पज यूज की नगर की राजनीति हो सकती है। ऐसे हालात बनते हैं तो इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता कि चेरब जैन अपनी गतिविधियों को राजनीतिक नहीं मानते और उन्हें सामाजिक कर्म, जिसे वे “समाजसेवा” कहते हैं, कर रहे हैं।