विधायकों के लिए सामान्यत: पहली प्राथमिकता रही है यह

एम हसीन

रुड़की। रुड़की में नहर के दोनों किनारों पर बनी सिंचाई विभाग की कोठियां विधायकों को बड़े पैमाने पर आकर्षित करती रही हैं। मंगलौर विधानसभा क्षेत्र भी इसका अपवाद हो ऐसा नहीं है। 2012 में चुनाव जीतने के बाद हाजी सरवत करीम अंसारी (अब जन्नत नशीन) ने पहली ही फुरसत में एक कोठी अपने नाम आवंटित करा ली थी। लेकिन मंगलौर सीट पर ही उनसे पहले 2002 व 2007 में विधायक निर्वाचित होने के बाद क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की थी। लेकिन अब जबकि विधायकों की “कोठी होड़” आम हो चुकी है तो यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वे अब इस होड़ का हिस्सा बनेंगे? वैसे जितने बड़े पैमाने पर कोठियां विधायकों के नाम आवंटित हुई हैं उन्हें देखते हुए यह मामला जनाक्रोश का कारण बनता रहा है और परिणाम देने वाला राजनीतिक मुद्दा भी, जिसका उल्लेख इसी रिपोर्ट में आगे आएगा। लेकिन अब यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। हो सकता है कि कल हाई कोर्ट का कोई एक ऐसा निर्णय आए जिसके चलते सभी को कोठियां खाली करना पड़ जाएं या फिर राज्य सरकार ही इन्हें विधायकों का कैंप ऑफिस घोषित कर दे। फिर पूर्व विधायकों का क्या होगा यह देखने वाली बात होगी।

सिंचाई विभाग की कोठियों में फिलहाल रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा, खानपुर विधायक उमेश कुमार, कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद, झबरेड़ा विधायक वीरेंद्र कुमार आबाद हैं। इनके अलावा भाजपा के पूर्व विधायक प्रणव सिंह चैंपियन, पूर्व विधायक देशराज कर्णवाल, राज्य सरकार में दर्जाधारी श्यामवीर सैनी आदि भी आबाद हैं। इन सभी लोगों में बहुत कम ऐसे हैं जो आवंटित कोठी को आवास के रूप में उपयोग कर रहे हैं। मसलन, कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद अपने रामपुर आवास पर ही निवास करते हैं। रुड़की के भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा अपने जादूगर मार्ग स्थित और झबरेड़ा विधायक वीरेंद्र जाती अपने गांव में स्थित निजी आवास पर ही निवास करते हैं। अलबत्ता उमेश कुमार जब प्रदेश में होते हैं तो इसी कोठी में निवास करते हैं। प्रणव सिंह चैंपियन और देशराज कर्णवाल भी सरकारी निवास में ही रहते हैं। श्यामवीर सिंह सैनी भी सरकारी आवास में ही रहते हैं। सरकारी कोठियां या फ्लैट गैर विधायकों को भी आकर्षित करते हैं। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई रश्मि चौधरी के आवास आवंटन को लेकर विवाद हुआ था तो डिफेंस में आई सरकार ने कुछ संशोधन किया था और आवंटित आवास भाजपा का जिला कार्यालय बन गया हुआ है। लेकिन दर्जनों दूसरे भाजपा कार्यकर्ताओं के नाम सरकारी आवास आवंटित हैं जो उनमें आबाद भी हैं।

उपरोक्त मामले सरकार के लिए मुश्किल का कारण भी बनता रहा है और राजनीति को साधने का जरिया भी। मसलन, प्रदीप बत्रा 2012 में विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अल्पमत सरकार को समर्थन दे रहे थे। तब वे खुद को प्रणव सिंह के समकक्ष दिखाना चाहते थे इसलिए उनके समर्थकों ने एक अधिकारी को आवंटित आवास में जबरन ताले तोड़कर कब्जा कर लिया था। मुकद्दमां भी हुआ था। लेकिन कोठी बत्रा के कब्जे में ही है। बाद में बनी हरीश रावत की सरकार के दौरान के इस आवंटन के दस्तावेज बताते हैं कि यह आवंटन केवल एक महीने के लिए था। यूं बत्रा को शायद यह सहूलियत मिल गई कि अब उन्हें किराया, बिजली, पानी, गृहकर भी अदा नहीं करना पड़ता होगा। बहरहाल, किसी विधायक के आवंटन को लेकर विवाद चाहे कितना भी हुआ हो, आवंटन केवल हाजी सरवत करीम अंसारी का ही निरस्त हुआ था वह भी उनके चुनाव हार जाने के बाद। शायद उन्होंने ही आवंटन का रिनिवल न कराया हो। दूसरी ओर, प्रणव सिंह चैंपियन के नाम आवंटित आवास मामले को तो उमेश कुमार ने बकायदा चुनावी मुद्दा बनाया था, इस पर जन समर्थन, विशेषत: प्रेस का, भी हासिल किया था; लेकिन विधायक बनने के बाद पहली फुरसत में उमेश कुमार ने भी अपने लिए आवास आवंटित करा लिया था। हालांकि उन्हें इसका राजनीतिक नुकसान यह हुआ है, जो लोकसभा चुनाव परिणाम में भी दिखा है और विधानसभा चुनाव में भी दिख सकता है, कि जो प्रणव सिंह विरोधी लॉबी चुनाव में उनके साथ आई थी वह अब उनके साथ नहीं है। बहरहाल, यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि छठा चुनाव लड़कर चौथी बार विधायक बने काज़ी निजामुद्दीन “सरकारी कोठी आवंटन होड़” का हिस्सा बनेंगे। यही इस बात का प्रमाण होगा कि राजनीति से उनकी प्राप्तियां दूसरी प्रकार की हैं जो उन्हें आम, गार्डन वैरायटी, विधायकों से अलग, कहीं ऊपर खड़ा करती हैं। इससे यह भी जाहिर होता है कि वे छोटी सोच के कट्टर समर्थकों की सोच से अलग, ऊपर अपनी स्वतंत्र विचारधारा रखते हैं और वे जिले की राजनीति में कहीं अलग खड़ा होते हैं। आखिर पांचवी बार विधायक बने मदन कौशिक ने भी सरकारी आवास आवंटित नहीं कराया हुआ है, पांच चुनाव लड़कर तीसरी बार विधायक बने हाजी मुहम्मद शहजाद ने भी तो सरकारी कोठी आवंटित नहीं कराई हुई है।