घाटों के जनपद हरिद्वार में कलियर में नहीं गंग नहर किनारे घाट, नित होती हैं दुर्घटनाएं
एम हसीन
कलियर शरीफ। 10 जून की शाम को एक युवक के गंग नहर में डूब जाने की खबर तीर्थ स्थल कलियर में अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि 11 जून को एक युवक और उसके दो मासूम बच्चों के डूब जाने की खबर से तीर्थ क्षेत्र स्तब्ध रह गया। यूं डूबने वाले तीन लोगों में एक युवक, एक उसका मासूम बेटा और एक उसकी मासूम बेटी शामिल रही। कोई पत्थर दिल ही होगा जो इस खबर को सुनकर गमगीन नहीं हो जाएगा। हालांकि ऐसी खबरें कलियर के लिए आम हैं। खासतौर पर मौजूदा मौसम में लोगों का यहां डूबते रहना, चाहे जितनी दुखदाई घटना हो, लेकिन ऐसी घटना यहां के लिए नई नहीं है। अहम बात यह है कि समस्या के स्थाई समाधान के विषय में यहां आज तक सोचा नहीं गया है। न उस सिंचाई विभाग ने सोचा जो इस नहर का मालिक और संचालक है, न उस दरगाह प्रशासन ने सोचा जो कि यहां तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए जिम्मेदार है और न सामान्य प्रशासन ने सोचा जिसे डूबे हुए लोगों की लाशों को तलाश करने से लेकर उनका पोस्टमार्टम कराने और फिर उनका अंतिम संस्कार कराने तक की बदमज़ा जिम्मेदारी को निभाना पड़ता है।
तीर्थ स्थल के रूप में कलियर का इतिहास सात सौ साल से ज्यादा पुराना है और गंग नहर का इतिहास भी दो सदी पूरा कर रहा है। हरिद्वार से कानपुर तक गंग नहर की उपयोगिता एक सिंचाई उपकरण के तौर पर है लेकिन इसका धार्मिक महत्व भी है। यही कारण है कि लगभग तमाम हरिद्वार जिले में गंग नहर के किनारे पर अनगिनत घाट बने हुए हैं। हरिद्वार-ज्वालापुर के बीच या रुड़की-कानपुर के बीच, जहां पुरानी, कॉटले निर्मित, नहर बहती है, उनके किनारे अंग्रेजों ने ही घाट बनाए हुए हैं। घाट इतने मजबूत, सुरक्षित और सुविधाजनक हैं कि हरिद्वार से दूर मुरादनगर का एक गंग नहर घाट “छोटा हरिद्वार” कहलाने लग गया है। अंग्रेजों ने नहर के बहुउपयोग को समझा था, इसलिए ऐसा किया गया था।
ऐसा नहीं है कि हरिद्वार-ज्वालापुर के बीच या रुड़की-कानपुर के बीच नहर में लोग नहीं डूबते। निश्चित रूप से डूबते हैं, लेकिन कलियर में लोगों के नहर में डूबने की घटनाएं ज्यादा, बहुत ज्यादा, होती हैं। सच यह है कि ज्वालापुर-रुड़की के बीच लोगों के ही नहीं बल्कि जानवरों के भी डूबने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। इसका कारण यह है कि यहां कॉटले निर्मित नहर नहीं बहती बल्कि यहां पानी उस नई नहर में बहता है जो 1980-2000 के बीच गंग नहर आधुनिकीकरण के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार ने बनाई थी। 20-22 किलोमीटर लंबे नहर के इस पूरे हिस्से में नहर के किनारे बहुत तीखी ढलान के साथ पक्के बने हुए हैं। इस पूरे हिस्से में अगर कोई नहर में गिर जाए तो उसके खुद तो बाहर निकलने की कोई संभावना होती ही नहीं, पानी के अत्यंत तेज बहाव और नहर की गहराई के कारण कोई बाहरी मदद भी उसके काम मुश्किल से ही आ पाती है। यह व्यवस्था ज्वालापुर वाया कलियर रुड़की तक की गई है। क्यों की गई है, यह कोई जायज़ सवाल नहीं है। सिंचाई विभाग नहर का मालिक है। वह अपनी जरूरत के मुताबिक कोई व्यवस्था बनाएगा तो उस पर सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं है।
लेकिन नहर के कलियर कनेक्शन को भी समझना जरूरी है। कलियर एक तीर्थ स्थल है जो कि गंग नहर के ऐन किनारे स्थित है। यहां नहर के दोनों किनारों पर दरगाहें स्थित हैं और हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री यहां हर रोज आते हैं। मौजूदा मौसम, जो कि ज्येष्ठ का महीना कहलाता है, में यात्रियों की संख्या यहां कई गुना बढ़ जाती है। ज्येष्ठ माह की खुश्क, भीषण गर्मी से उत्तर भारत का कोई नागरिक नावाकिफ नहीं है। न ही कोई इस बात से नावाकिफ है कि गंग नहर ही नहीं बल्कि उससे निकलने वाले तमाम सिंचाई राजबाहों का शीतल जल भी पूरे क्षेत्र में लोगों को तो नहाने के लिए आकर्षित करता ही है, जानवरों को भी प्यास बुझाने के लिए अपनी ओर आकर्षित करता है। यही वह आकर्षण है जो कलियर में लोगों को गंग नहर के किनारे लेकर जाता है। कलियर में गंग नहर के किनारे सीढ़ियां बनी हुई हैं लेकिन वहां घाट नहीं हैं, सुरक्षा के जैसे प्रबंध ज्वालापुर या रुड़की में हैं, वैसे नहीं हैं। इसी का खामियाजा बाहर से यहां आने वाले तीर्थ यात्री भुगतते हैं।
लेकिन इसका एक कारण और है। वह कारण यह है कि तीर्थ स्थल पर दरगाह प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराई गई जल सुविधाएं न के बराबर हैं जो लोगों को नहर की ओर जाने से रोकें। दरगाह के पास धन की कोई कमी नहीं है। स्थानीय विधायक हाजी फुरकान अहमद के मुताबिक दरगाह के खातों में सौ करोड़ रुपए जमा हैं जो लगातार बढ़ रहे हैं। जाहिर है कि यह धन उन्हीं श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान से इकठ्ठा होता है जो यहां गंग नहर में डूबकर अपनी जान भी गंवाते हैं, अपने नौनिहालों की लाशें लेकर भी अपने घर लौटते हैं। कलियर से महज 10 किलोमीटर दूर मुख्य हरिद्वार मार्ग पर वाटर पार्क बना हुआ है जो कि प्राइवेट है। गर्मी के महीने में जल-क्रीड़ा करने के इच्छुक लोग इसका भरपूर आनंद लेते हैं। कलियर एक तीर्थ स्थल है। यहां लोग पैसा खर्च करने के लिए आते हैं। इसलिए प्राइवेट वॉटर पार्क भी यहां चल ही सकता है। लेकिन यह बड़ी सोच है। अहम बात यह है कि गर्मी के मौसम में जितने जल-स्रोतों की यात्रियों को आवश्यकता होती है, दरगाह प्रबंधन आज तक उतनी भी नहीं कर पाया। दरगाह क्षेत्र में जो तालाब सदियों पुराना है उसे दरगाह प्रशासन ने पक्का तो बनवा दिया है लेकिन उसका उपयोग गंदगी डालने के लिए ही होता देखा जाता है।
जब इतना कुछ दरगाह प्रबंधन कर रहा है तो सामान्य प्रशासन से तो कोई उम्मीद ही क्या की जाए और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की तो यह जिम्मेदारी भी नहीं है कि वह यहां नहर के किनारों पर घाट बनवाए। वैसे यही सिंचाई विभाग रुड़की-कलियर के बीच सड़कें चौड़ी करा रहा है। नहर की रेलिंग की ऊंचाई भी बढ़ाई जा रही है। लेकिन घाट उसकी प्राथमिकता नहीं हैं।