आसन्न चुनाव के मद्देनजर अब नगर में उठने लगा सवाल
एम हसीन
रुड़की। प्रदेश में अगर सितंबर के महीने में निकाय चुनाव होता है तो रुड़की नगर निगम का चुनाव नहीं हो पाएगा। इसका कारण केवल इतना ही नहीं है कि राज्य निर्वाचन आयोग पहले ही इसकी घोषणा कर चुका है, बल्कि इसका एक कारण यह भी है कि नगर निगम रुड़की का बोर्ड अभी भंग नहीं है और इसका कार्यकाल 2 जनवरी तक बकाया है, हालांकि 2020 में इसी बोर्ड के महापौर के तौर पर चुने गए गौरव गोयल पद से इस्तीफा दे चुके हैं। जाहिर है कि निर्वाचन आयोग यहां चुनाव तभी कराएगा जब बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो जायेगा और ऐसा दिसंबर में भी हो सकता है।
बहरहाल, चुनाव कभी हो, मेयर पद के दावेदार चेहरे तो होंगे ही। कम से कम भाजपा और कांग्रेस को तो दो ऐसे चेहरों की जरूरत होगी ही जो चुनाव लड़ सकें। चूंकि नगर की जनता अभी तक निर्दलीय को ही नगर प्रमुख चुनती आई है, इसलिए एक चेहरे की जरूरत जनता को भी हो सकती है। सवाल यह है कि वे चेहरे कौन होंगे? जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 2020 में गौरव गोयल मेयर चुने गए थे। गौरव गोयल ने आजन्म भाजपा की राजनीति की थी लेकिन जब उन्हें मेयर का टिकट नहीं मिला था तो वे बगावत करके निर्दलीय मैदान में आ गए थे और जनता ने उन्हें चुन भी लिया था। भाजपा ने तब पुराने संघ कार्यकर्ता मयंक गुप्ता को टिकट दिया था जो चुनावी दौड़ में बहुत पीछे रह गए थे। तब गौरव गोयल को टक्कर दी थी कांग्रेस के रेशू राणा ने।
रेशू राणा कोई राजनीतिक चेहरा नहीं थे। उन्हें पार्टी ने महज इसलिए अपना प्रत्याशी बनाया था क्योंकि तब के सिटिंग कांग्रेस मेयर यशपाल राणा के चुनाव लड़ने पर निगम की एक संपत्ति के घलमेल के आरोप में सरकार ने 6 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। उनकी तत्कालीन पार्षद पत्नी के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी कारण यशपाल राणा ने टिकट अपने भाई रेशू राणा के नाम से लिया था और रेशू राणा ही चुनावी मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहे थे। वैसे तब पूर्व सांसद राजेंद्र बाड़ी भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे और कई निर्दलीय भी मैदान में आए थे।
अब उपरोक्त लोगों में लगभग सभी की मेयर के चुनाव पर नजर है यह तो दिख रहा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के हरिद्वार सांसद बन जाने के बाद मयंक गुप्ता भी फॉर्म में आ गए हैं और यशपाल राणा भी कांग्रेस में टिकट के मजबूत दावेदार अभी भी बने हुए हैं। इस क्रम में गौरव गोयल भी धीरे धीरे अपनी सक्रियता को बढ़ा रहे हैं। लेकिन उपरोक्त सभी दावेदारों की दावेदारी का तभी कोई अर्थ है जब मेयर पद अनारक्षित रहे। तब इन सब के साथ कौन और दावेदार सामने आएंगे यह देखना बाकी है। इसके अलावा, अगर पद आरक्षित हो जाता है तो कौन नए चेहरे होंगे, यह देखने वाली बात होगी।