मंगलौर नगर से देना चाहते हैं क्षेत्रीय राजनीति के एकतरफा हो जाने का संदेश
एम हसीन
रुड़की। यहां कोई सिडकुल जैसी परियोजना नहीं है, हो भी नहीं सकती, क्योंकि यहां के विधायक तो विपक्ष से भी अधिक विपक्ष के हैं अर्थात सत्ता के साथ कांग्रेस के जिन नेताओं का सीधा तालमेल चला आ रहा है उनमें मंगलौर विधायक का नाम शामिल नहीं हैं। गुलदस्ता लेकर मुख्यमंत्री से मिलते हुए, मुख्यमंत्री को चारधाम यात्रा की कामयाबी की बधाई देते हुए उन्हें किसी फोटो में नहीं देखा गया, जबकि उनकी पार्टी अन्य बड़े नेताओं के ऐसे फोटो आए हैं।
बहरहाल, सामान्य निर्माण कार्य के लिए मंगलौर में भी कोई सरकारी पाबंदी नहीं है। राज्य वित्त योजना में जब हर विधायक को 10 करोड़ मिलने हैं तो मंगलौर विधायक को भी मिलने ही हैं, जब विधायक निधि में हर विधायक को पौने छः करोड़ मिलने हैं तो मंगलौर विधायक को भी मिलने ही हैं, जब जिला योजना में हर विधायक को सवा करोड़ मिलने हैं तो मंगलौर विधायक को भी मिलने ही हैं। अवस्थापना निधि से, आपदा निधि से, आकस्मिक निधि से और लोक निर्माण विभाग, जल निगम, कृषि, शिक्षा, जल संस्थान आदि विभागों की निधियों से करोड़ों रुपए जब हर विधायक को मिलने हैं तो मंगलौर विधायक को भी मिलने ही हैं। भले ही कोई विशेष प्रस्ताव डबल इंजन की सरकार मंगलौर के कांग्रेस विधायक का स्वीकार न करे, तो भी सामान्य निर्माण कार्यों के लिए प्रतिवर्ष मिलने वाली करीब 20 करोड़ की यह राशि भी कुछ कम नहीं है। आखिर 5 साल में यही सौ करोड़ हो जाती है। अहम यह है कि इसी राशि का उपयोग इस बार क़ाज़ी निज़ामुद्दीन चुनावी राजनीति के दृष्टिकोण से करना चाहते हैं, गंभीरता से करना चाहते हैं और जन इच्छा के अनुरूप करना चाहते हैं, कर रहे है। जाहिर है कि फिलहाल उनका लक्ष्य 2027 है जो कि अनकरीब है।
यह अहम है कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन का मुकाबला 2027 में एक बार फिर उन्हीं करतार सिंह भड़ाना के साथ होना संभावित है जो 2024 में यहां उप-चुनाव लड़ कर और महज ढाई सौ वोटों से हार कर हटे हैं। करतार सिंह भड़ाना गाहे-बगाहे यहां चक्कर काटते रहते हैं। पिछली बार जब वे आए थे तो कह गए थे कि वे क्षेत्र के हर गांव को पांच लाख रुपए की योजना देंगे। मुख्यमंत्री से उनके सम्बन्ध ठीक हैं जबकि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के संबंध मुख्यमंत्री से ठीक नहीं हैं। इसलिए कोई बड़ी बात नहीं कि करतार सिंह भड़ाना की पहल पर चुनावी वर्ष में राज्य सरकार यहां हर गांव को 5 लाख रुपए की परियोजना दे दे। इसी कारण इस बात को क़ाज़ी निज़ामुद्दीन भी बेहतर समझते हैं कि वे चाहें या न चाहें लेकिन निर्माण का तत्व अब मंगलौर की राजनीति में रहेगा ही; खासतौर पर इसलिए कि भाजपा के पास “धर्म” के अलावा जो दूसरा मुद्दा है वह “विकास” ही है और “धर्म” का मुद्दा मंगलौर में भाजपा के लिए दोधारी तलवार है अर्थात, इसका जितना लाभ भाजपा को होगा उतना ही कांग्रेस को भी होगा और कांग्रेस ही यहां मुख्य पार्टी होगी। फिर भाजपा के दृष्टिकोण से धर्म का अतिवाद यहां वह नतीजा भी दे सकता है जो पिछले उप-चुनाव में आया था। ऐसे में भाजपा के लिए यहां बेहतर विकल्प “निर्माण का मुद्दा” है और इसी रास्ते पर भड़ाना चल रहे हैं। यानी 2027 के मद्देनजर यहां निर्माण का मुद्दा रहेगा ही। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि क़ाज़ी निज़ामुद्दीन भी निर्माण को तरजीह दे रहे हैं। बताया गया है कि उनके प्रस्ताव पर लंढौरा रोड से गाधारोणा के लिए बायपास मार्ग का निर्माण किया जा रहा है। इसी प्रकार उन्होंने शिया समुदाय के कब्रिस्तान की चहारदीवारी भी कराई है। कुल मिलाकर वे पिछले साल हिस्से में आई अपनी हर प्रकार की निधि का इस्तेमाल निर्माण के लिए कर रहे हैं। इसमें भी वे इस बात का ध्यान रखते दिखाई दे रहे हैं कि निर्माण जनता के व्यापक हित में हो या फिर जनता की इच्छा के अनुरूप हो। और तो और, इस बार वे जनपद की विकास योजनाओं के लिए विधासभा में भी लड़ते दिखाई दिए। उन्होंने गंग नहर पर बने कई पुराने पुलों, जिनमें लिबरहेडी और मुहम्मदपुर के पुल भी शामिल हैं, के स्थान पर नए पुल बनाने की मांग उठाई थी।