लेकिन विधायक प्रदीप बत्रा जी, क्या सड़क की महज लिपाई से हो गया विकास?
एम हसीन
रुड़की। पंडित दया शंकर “नसीम” का एक शेर है “लाए उस बुत को इल्तेजा करके, कुफ्र टूटा खुदा-खुदा करके।” चंद्रपुरी की जिस सड़क के आर बी एम कार्य का कल नगर विधायक प्रदीप बत्रा ने उद्घाटन किया और काम शुरू कराया, उस पर चलने वाले लोगों की कैफियत को यह शेर पूरे तौर पर बयान करता है। मुख्तसर यह है यह मार्ग नगर के सबसे व्यस्त मार्गों में से एक है और यह कई बरस से पूरी तरह ध्वस्त पड़ा था। इस पर चलना नगर के हर व्यक्ति की मजबूरी है और, भविष्य में पता नहीं क्या होगा, लेकिन फिलहाल तक इस पर सफर “खुदा-खुदा” करके, “राम-राम” करके “तौबा-तौबा” करके ही पूरा हो पाता था। ऐसे में जब मार्ग के सुधारीकरण का काम शुरू हो गया है तो जाहिर है कि “कुफ्र” टूट गया है, भगवान (या शायद प्रदीप बत्रा) ने इस राह के राहगीरों को अपनी शरण में ले लिया है, अर्थात मार्ग की मरम्मत तो हो ही जाएगी। यह अलग बात है कि अब भी राह आसान होगी या नहीं।
बहरहाल, यहां अहमियत इस बात की नहीं है कि विधायक द्वारा अभी तक मार्ग की सुध क्यों नहीं ली गई थी। सब जानते हैं कि 2022 में प्रदीप बत्रा हारते-हारते जीते थे, इसलिए वे अभी तक शहर के लोगों को सजा दे रहे थे। नगर में जनहित के हर काम पर जब विधायक का पहरा है तो यह सड़क भी तो उन्हीं की टेरिटरी में आती है। फिर अभी तक इस सड़क का न बन पाना कोई बड़ी बात नहीं थी। यह भी मसला नहीं है कि अब इस सड़क का निर्माण शुरू हो गया है? सब जानते हैं कि प्रदीप बत्रा राजनीति से संन्यास नहीं लेने जा रहे हैं। उन्हें 2027 का चुनाव लड़ना है और उन्हीं लोगों के बीच वोट मांगने हैं जिन्हें वे अभी तक सजा देते आए हैं। इसलिए अब उनका मुलायम मक्खन बनना ताज्जुब की बात नहीं है। अहम बात यह है कि प्रदीप बत्रा ने दशकों पहले बन चुकी और लगातार बनती आई सड़क की महज लिपाई को, अन्य शब्दों में कहें तो मात्र गढ़े भर देने को, “विकास” की परिभाषा दी है और इस बेहद मामूली, रूटीन काम को “ग्रीन सिटी, क्लीन सिटी, मॉडल सिटी” का पर्याय बताया है। क्या उन्होंने यह सोचकर बोला है कि लोग इन भारी-भरकम शब्दों का अर्थ नहीं समझते?
प्रदीप बत्रा ऐसा समझ सकते हैं क्योंकि वे गैब्रेलाइट हैं, हालांकि उनके एक निकट मित्र का कहना है कि वे स्कूल में बैक बेंचर्स थे। ऐसे में कोई ताज्जुब की बात नहीं कि वे ही सड़क बनाने की बजाय सड़क की महज लिपाई को विकास समझ लेते हों। सच यह है कि यह जिस सड़क का जिक्र है वह सड़क तब बनाई गई थी जब नगर में वोटों की संख्या महज 50 हजार होती थी। जब कारों की संख्या नगण्य थी और जब इस सड़क के दोनों ओर इक्का-दुक्का मकान या छोटी-मोटी दुकान होती थी। जब अधिकांशतः यहां खेत और बाग होते थे। आज यहां बेहद घनी आबादी है, बड़े-बड़े शोरूम्स हैं, नर्सिंग होम हैं जो रोड पर पार्किंग को अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं, पेट्रोल पंप हैं और अनगिनत चार पहिया वाहन हैं।
मेरा सवाल यह है कि जब हर प्रकार की सुविधा का यहां विस्तार हुआ है, नगर निगम की आय में बढ़ोत्तरी हुई है, सरकार का जी इस टी और इंकम टैक्स बढ़ रहा है तो सड़क का विस्तार क्यों नहीं हो रहा है? सड़क को अगर ढांचागत सुविधा माना जाए तो ढांचागत सुविधा का विस्तार क्यों नहीं हो रहा है? सड़क की चौड़ाई क्यों नहीं बढ़ाई जा रही है? उसमें डिवाइडर क्यों नहीं डाले जा रहे हैं? या नई सड़कें क्यों विकसित नहीं की जा रही हैं या एकतरफा यातायात क्यों शुरू नहीं किया जा रहा है? और अगर यह सब नहीं हो रहा है तो इसे “विकास” कैसे कहा जा सकता है?