क्या नगर में शुरू हो गई है सत्ता के केंद्रों की टकराहट?
एम हसीन
रुड़की। पहली ही बोर्ड बैठक में पत्रकारों की एंट्री बैन करके खूब सुर्खियां बटोर चुके नगर निगम में विवादों का एक नया अध्याय खुल गया। विगत दिवस पार्षदों ने मुख्य नगर आयुक्त के कार्यालय की तालाबंदी कर दी और महापौर पति ललित मोहन अग्रवाल के साथ भी उनका बहस-मुबाहसा हुआ। मुद्दा पार्षद क्षेत्रों की सफाई-व्यवस्था और निर्माण कार्यों का था। इसी कारण बाद में स्थिति सामान्य हो गई। बहरहाल, मौजूदा बोर्ड के दौर में इस प्रकार का यह पहला विवाद था जो विगत दिवस घटित हुआ। लेकिन इसने गौरव गोयल के नेतृत्व वाले पिछले बोर्ड की याद दिला दी जब इस प्रकार के विवाद बोर्ड में रोज ही होते थे। तब ऐसा नगर से लेकर प्रदेश तक के राजनीतिक समीकरणों के चलते होता था और जिसकी परिणति कार्यकाल में डेढ़ साल का समय शेष रहते तत्कालीन मेयर गौरव गोयल के इस्तीफे के साथ हुआ था। नगर निगम के इतिहास में दर्ज है कि डेढ़ साल तक 40 पार्षदों वाले बोर्ड को नेतृत्व देने वाला कोई महापौर नहीं था। राजनीतिक क्षेत्रों में सवाल यह उठ रहा है कि यह सब निगम के भीतरी अंतर्विरोधों के कारण हुआ है या फिर नगर के राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आ रहा है? साफ शब्दों में कहा जाए तो क्या सत्ता का अब तक एक माना जा रहा सत्ता का केंद्र अब दरकने लगा है और उसके अलग-अलग चेहरे बनने लगे हैं? जाहिर है कि इस सवाल का सही जवाब कुछ समय बाद ही सामने आ सकेगा। लेकिन इसके भरोसे एक बार इतिहास को रिव्यू करने के हालात तो पैदा हो ही गए हैं।
दअसल, वर्तमान परिस्थिति में महत्वपूर्ण अंतर यह नहीं है कि गौरव गोयल के स्थान पर अब बतौर मेयर अनीता देवी अग्रवाल कार्यरत हैं। अंतर यह है कि अपने दौर में गौरव गोयल को सत्ता का संरक्षण हासिल नहीं था। तब की सत्ता के दोनों केंद्र, तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खेमे का एक बड़ा हिस्सा, खासतौर पर हरिद्वार विधायक और तत्कालीन शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक, और त्रिवेंद्र सिंह रावत विरोधी खेमा पूरा का पूरा गौरव गोयल के खिलाफ था। अलबत्ता तब नगर विधायक प्रदीप बत्रा उनके साथ थे जो उनके गॉड फादर भी बने थे। लेकिन समस्या यह थी की तब की सत्ता के एंड पर प्रदीप बत्रा भी उसी तरह उपेक्षित थे, जिस प्रकार गौरव गोयल। यही कारण है कि त्रिवेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री रहते तो गौरव गोयल को राहत मिली नहीं थी। बाद में हालांकि दौर बदला था और प्रदीप बत्रा सत्ता के निकट पहुंचे थे लेकिन तब तक गौरव गोयल की उनके साथ इतना दूरियां बन गई थी और उनके खिलाफ व्यवस्था के पास इतना कुछ इकठ्ठा हो गया था कि बत्रा की सत्ता से निकटता उनके किसी काम नहीं आ सकी थी। उन्हें अपने कार्यकाल में डेढ़ साल शेष रहते पद छोड़ना पड़ा था।
बहरहाल, आज यह स्थिति नहीं है। अनीता देवी अग्रवाल के पति ललित मोहन अग्रवाल को सीधे मुख्यमंत्री से जुड़ा नेता माना जाता है और हाल तक नगर विधायक प्रदीप बत्रा तथा पूर्व सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक का भी उन्हें पूर्ण सहयोग देखने में आ रहा था। इन दोनों ही लोगों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कैंप का आदमी माना जाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि मौजूदा बोर्ड की पहली बैठक में नगर विधायक का निर्णायक हस्तक्षेप रहा था और उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों को मुख्य रूप से स्वीकार किया गया था। लेकिन यह पुरानी बात है। तब से अब तक गंग नहर में खूब पानी बह चुका है। दूसरी बात नए बोर्ड के हाथों की मेंहदी से जो खुशबू उड़कर मार्च तक निगम को महका रही थी वह अब रफू चक्कर हो चुकी है। कोई बड़ी बात नहीं कि नए बोर्ड के लिए आने वाले कुछ महीने खासे अहम साबित होने वाले हैं।