किसी दल में जाएंगे या फिर निर्दलीय ही उतरेंगे 2027 की वैतरणी में?
एम हसीन
रुड़की। पूर्व मेयर यशपाल राणा ने 2027 की चुनावी वैतरणी में उतरने की घोषणा पिछली 26 जनवरी की सुबह तभी कर दी थी जब वे निकाय चुनाव की मतगणना कराकर निपटे थे। बाद में जब भी उनसे मुलाकात हुई, वे चुनावी रणनीति पर ही चर्चा करते हुए व्यस्त दिखाई दिए। अपने कार्यकर्ताओं को 2027 के चुनाव की तैयारी के संबंध में दिशा-निर्देश ही देते दिखाई दिए। मतगणना को लगभग एक महीने का समय बीतने के बाद उन्होंने “परम नागरिक” से स्पष्ट शब्दों में कहा कि “वे 2027 का चुनाव लड़ेंगे।” लेकिन सवाल यह है कि वे चुनाव जैसे लड़ेंगे! बतौर निर्दलीय? बतौर कांग्रेस प्रत्याशी? या फिर इस बार वे नया प्रयोग करेंगे और भाजपा के टिकट पर दावा करेंगे?
यशपाल राणा का अगले चुनाव को लेकर गंभीर होना कोई अप्रत्याशित बात नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि वे अब उन हालात पर भी गौर करेंगे जिनके कारण वे अभी तक जीत नहीं पाए हैं। जहां तक कांग्रेस के टिकट पर उनके चुनाव लड़ने का सवाल है तो उन्हें इस बात पर गौर करना होगा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में जब तत्कालीन नगर विधायक और भाजपा प्रत्याशी प्रदीप बत्रा का जबरदस्त विरोध था, तब भी यशपाल राणा जीत नहीं पाए थे। तब एक बड़े मतदाता वर्ग ने केवल इसलिए भाजपा को वोट दे दिया था क्योंकि कांग्रेस उनकी उम्मीदों की पार्टी नहीं बन सकी थी और प्रत्याशी के रूप में यशपाल राणा भी उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप प्रत्याशी नहीं बन पाए थे। हालांकि यह भी सच है कि यह यशपाल राणा के ही जिगर गुर्दे की बात थी कि वे कांग्रेस को 27 हजार वोटों से उठाकर 34 हजार से अधिक वोटों तक ले गए थे। अब निकाय चुनाव ने एक बार फिर यह साबित किया है कि रुड़की का मतदाता यशपाल राणा को वोट देने से नहीं कतराता लेकिन कांग्रेस को वोट देने से इस मतदाता को अभी भी परहेज है। अगर ऐसा नहीं होता तो निकाय चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में सामने आई पूजा गुप्ता भले ही चुनाव जीत नहीं पाती, लेकिन वे मजबूत चुनाव लड़ जाती। इससे यह संदेश मिलता है कि भले ही निकाय चुनाव का परिणाम ने कांग्रेस में यशपाल राणा की वापसी के रास्ते खोल दिए हैं लेकिन कांग्रेस का टिकट यह उन्हें इस बात की गारंटी नहीं दे पाएगा कि वे अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने के बावजूद चुनाव जीत ही जाएंगे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का तो यहां तक मानना है कि अगर यशपाल राणा निर्दलीय के रूप में ही विधानसभा चुनाव लड़ें तो कहीं ज्यादा बेहतर और प्रभावशाली प्रदर्शन कर सकते हैं।
दूसरी संभावना यह है कि वे भाजपा में ही शामिल हो जाएं और पार्टी से विधानसभा का टिकट मांगें। ध्यान रहे कि भाजपा में फिलहाल विधानसभा टिकट के एकमात्र दावेदार प्रदीप बत्रा हैं जो कि वर्तमान विधायक हैं और तीसरी बार विधायक हैं। लेकिन हालात का इशारा यह है कि प्रदीप बत्रा भले ही इन दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निकट माने जा रहे हों लेकिन वे न केवल पार्टी की मुख्य धारा से कटे हुए हैं, बल्कि नगर का मतदाता भी उन्हें अब और अधिक बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। संक्षेप में कहें तो 2027 का विधानसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशी बदलकर भी लड़ सकती है। प्रदीप बत्रा के तमाम समर्थकों समेत अनेक लोग इस बात को मानते भी हैं कि इस बार उनका विधानसभा टिकट कट सकता है। अगर ऐसी स्थिति बनती है तो संभावना इस बात की भी रह सकती है कि भाजपा यशपाल राणा को ही अपना टिकट देकर चुनाव लड़ाए। सवाल यह है कि क्या यशपाल राणा ऐसा कोई फैसला लेना चाहेंगे?