अनीता देवी अग्रवाल को मेयर बनाना वाकई था बड़ा काम
एम हसीन
रुड़की। बात अगर हरिद्वार जिले में राजनीति करने की हो तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मजबूरी है कि वे पूर्व कैबिनेट मंत्री और हरिद्वार देहात सीट के पूर्व विधायक यतीश्वरानंद को आगे करें। कारण यह है कि हरिद्वार में मुख्यमंत्री की अपनी टीम बस इतनी ही है। और पार्टी की भीतरी राजनीति में उन्हें अक्सर हरिद्वार सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ भी प्रतिस्पर्धा करना पड़ती है और हरिद्वार विधायक मदन कौशिक के साथ तो यतीश्वरानंद की भी पुरानी प्रतिद्वंदिता है। फिर पूर्व सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की राजनीति भी हरिद्वार में कभी मुख्यमंत्री के समानांतर होती है और कभी सांसद के समानांतर होती है। ऐसे में मुख्यमंत्री के पास यतीश्वरानंद के अलावा और कोई प्रभावी और निर्णायक विकल्प नहीं हैं। रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा मुख्यमंत्री के खास माने जाते हैं लेकिन उनके ऊपर मुख्यमंत्री ने कभी बड़ी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि अपनी प्रतिष्ठा या अपनी सरकार के स्थायित्व से जुड़े मामलों में मुख्यमंत्री यतीश्वरानंद पर ही निर्भर करते हैं। मसलन, पिछले जून में उन्होंने मंगलौर के उप-चुनाव की जिम्मेदारी यतीश्वरानंद को भी सौंपी थी। तब उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना के चेहरे पर यतीश्वरानंद ने ठीक वैसा ही परिणाम दिया था, जैसाकि वक्त की जरूरत थी। भड़ाना कांग्रेस के दिग्गज क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के सामने जीते नहीं थे लेकिन हारे भी नहीं थे। इसी प्रकार हाल के निकाय चुनाव में रुड़की मेयर सीट को जीतने की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री ने यतीश्वरानंद को ही सौंपी थी। अहम बात यह है कि यतीश्वरानंद ने मुख्यमंत्री की इस जरूरत को पूरा किया। उन्होंने निगम जीतकर मुख्यमंत्री को दिया।
जैसाकि सब जानते हैं कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री को शुरू से ही प्रतिस्पर्धियों से जूझना पड़ता रहा है। डॉ निशंक को दो साल मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था और वे खुद भी भुवन चंद्र खंडूरी को हटाकर मुख्यमंत्री बने थे। इसी प्रकार त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी अपने कार्यकाल की चौथी वर्षगांठ का जश्न मनाने से पहले कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। तब उनके खिलाफ जो आरोप तय हुए थे उनमें एक कई निगमों के चुनाव में भाजपा की हार भी थी। जैसा कि सब जानते हैं कि 2018 के चुनाव में भाजपा हरिद्वार मेयर पद कांग्रेस के सामने हार गई थी। तब मदन कौशिक शहरी विकास मंत्री थे और वे हरिद्वार में भाजपा का मेयर नहीं चाहते थे। तब रुड़की में चुनाव हरिद्वार के साथ नहीं हुए थे बल्कि 2019 में अकेले रुड़की में चुनाव हुए थे। तब यहां भी भाजपा हार गई थी। अब पूरे प्रदेश में निकाय चुनाव एक साथ हो रहे थे और मुख्यमंत्री को इस बात का भरपूर अहसास था कि अगर निगम चुनाव में पार्टी की हार हुई तो उनके पार्टी विरोधी मामले को हाइकमान के सामने ले जाने से बाज नहीं आयेंगे। वे इसे मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की व्यक्तिगत नाकामी के तौर पर पेश करेंगे।
इसी कारण मुख्यमंत्री ने कम से कम निगम चुनाव में न हारने का लक्ष्य तय किया था। हरिद्वार जिले में मुख्यमंत्री को हरिद्वार नगर निगम की चिंता नहीं थी। कारण, पार्टी की राजनीति में हाशिए पर पड़े और अपने जीवन के सर्वाधिक बुरे दिनों का सामना कर रहे हरिद्वार विधायक मदन कौशिक के अपने अस्तित्व के लिए इस बार भाजपा का जितना जरूरी था। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए मदन कौशिक जी तोड़ मेहनत कर रहे थे। उन्होंने लक्ष्य को हासिल किया भी। लेकिन रुड़की निगम का मामला मुख्यमंत्री न तो स्थानीय विधायक प्रदीप बत्रा के भरोसे छोड़ सकते थे, जिन्हें लेकर पहले ही चर्चा चल रही थी कि वे कांग्रेस प्रत्याशी सचिन गुप्ता को प्रमोट कर रहे थे, और न ही पार्टी जिलाध्यक्ष शोभाराम प्रजापति के भरोसे जो कि बहुत प्रभावशाली संगठन मुखिया नहीं हैं। उनके पास इसका कोई विकल्प नहीं था कि वे इस निकाय को जीतने का लक्ष्य यतीश्वरानंद को सौंपें। यही उन्होंने किया भी। यतीश्वरानंद को भी चुनाव जीतने के लिए चाहे पैसा पानी की तरह बहाना पड़ा और चाहे मशीनरी का इस्तेमाल करना पड़ा, चाहे किसी की मनुहार करना पड़ी और चाहे किसी की तरफ आँखें तरेरना पड़ी, लेकिन उन्होंने लक्ष्य हासिल करके ही दम लिया।