भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही हैं निर्दलीय श्रेष्ठा राणा

एम हसीन

रुड़की। 2003 में निर्दलीय के रूप में 27 हजार वोट लेकर जीते दिनेश कौशिक अगले ही निकाय चुनाव में जब कांग्रेस के टिकट पर मैदान में आए थे तो महज 4 हजार वोट और छठे नंबर पर सिमट गए थे। यह इस बात का सबूत है कि रुड़की में विरोध चेहरे का नहीं है बल्कि पार्टी, खास पार्टी कांग्रेस, का है। दरअसल, रुड़की हिंदुत्व का गढ़ है और भाजपा बहुसंख्यक समाज में यहां की सर्व स्वीकार्य राजनीतिक पार्टी है। यह अलग बात है कि निकाय चुनाव में भाजपा की जीत का भी यहां कोई रिकॉर्ड नहीं है। जारी निकाय चुनाव में पूर्व मेयर यशपाल राणा भी कांग्रेस टिकट के दावेदार थे। पार्टी ने उनका टिकट काट दिया तो महिला सीट होने के कारण उन्होंने अपनी पत्नी श्रेष्ठा राणा को प्रत्याशी बना दिया। इसे यशपाल राणा का सौभाग्य समझना चाहिए कि उन्हें पार्टी टिकट नहीं मिला। मिला होता तो वे जनता के प्रत्याशी न बने होते।

पूर्व मेयर यशपाल राणा का नगर में अपना राजनीतिक प्रभाव है, अपनी पहचान है, अपना वर्चस्व है। अपनी पहचान के चलते, अपने प्रभाव के चलते उन्होंने 2019 के मेयर चुनाव में कांग्रेस को 9 हजार वोटों से उठाकर 27 हजार वोटों पर पहुंचा दिया था, लेकिन कांग्रेस का टिकट होने के कारण जीत का आंकड़ा वे भी हासिल नहीं कर पाए थे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ते हुए अपने प्रभाव के चलते पार्टी को 34 हजार के आंकड़े तक तो पहुंचा दिया था लेकिन जीत वे भी नहीं पाए थे। 2013 में निर्दलीय मेयर निर्वाचित होने वाले यशपाल राणा भी कांग्रेस के टिकट पर दो चुनाव हार चुके हैं। यही इस बात का प्रमाण है कि नगर में कांग्रेस के टिकट पर कोई अपवाद स्वरूप ही जीत सकता है, जैसे 2012 में प्रदीप बत्रा जीत गए थे। उसके लिए भी माहौल पहले ही वैसा ही बना हुआ होता है। ऐसा माहौल फिलहाल नहीं है। फिलहाल कांग्रेस भविष्य के किसी सपने के साथ नहीं बल्कि अपने इतिहास के साथ चुनाव लड़ रही है। इतिहास इस आरोप को गलत ठहराता है कि 2019 या 2022 में नगर में यशपाल राणा हारे थे। सच यह है कि दोनों चुनाव कांग्रेस हारी थी; ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार 2002 में मनोहर लाल शर्मा हारे थे, 2007 में हाजी फुरकान हारे थे, 2017 में सुरेश जैन हारे थे, 2003 में राजेश गर्ग हारे थे, 2008 में दिनेश कौशिक हारे थे, 2013 में राम अग्रवाल हारे थे, 2004 में दीपक कुमार हारे थे, 2014 में रेणुका रावत हारी थी, 2019 में अम्बरीष कुमार हारे थे और 2024 में वीरेंद्र रावत हारे थे। रुड़की में कांग्रेस की जीत के दो ही उदाहरण हैं। 2009 में हरीश रावत और 2012 में प्रदीप बत्रा। लगता नहीं कि कांग्रेस अपने इस इतिहास को इस बार बदलने जा रही है।