क्या कोई करिश्मा दिखा पाएंगे निवर्तमान अध्यक्ष डॉ शमशाद?
एम हसीन
मंगलौर। उत्तराखंड स्थापना के बाद मंगलौर नगर की स्थिति यह रही है कि स्थानीय विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन चाहे बसपा में रहे हों चाहे कांग्रेस में, उनकी राजनीति की बुनियाद अंसारी विरोध रहा है। विधानसभा की राजनीति में उनके सामने हाजी सरवत करीम अंसारी रहे हैं। यहां कस्बे में कुल मतों की संख्या करीब 45 हजार है जिनमें अंसारी मतों की संख्या करीब 17 हजार है। इनपर 2022 के विधानसभा चुनाव तक हाजी का एकमुश्त कब्जा था। अन्य बिरादरियों में अपना प्रभाव कायम करने के लिए उन्होंने तेली बिरादरी के डॉ शमशाद के साथ गठजोड़ करके उन्हें नगर पालिका का अपना प्रतिनिधि बनाया हुआ था। उन्हीं के खेमे की ओर से चुनाव लड़ते हुए डॉ शमशाद ने 2013 का नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव हारा था और उन्हीं के खेमे के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने 2018 का नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव जीता था। उनके मुकाबले के लिए क़ाज़ी निजामुद्दीन ने भी तेली बिरादरी के ही चौधरी इस्लाम को अपना नगर प्रतिनिधि बनाया हुआ था। चौधरी इस्लाम ही 2013 में क़ाज़ी कैंप के प्रत्याशी के रूप में नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे और चौधरी इस्लाम ही क़ाज़ी कैंप के प्रत्याशी के रूप में 2018 का चुनाव हारे थे। नगर में तेली मतों की तादाद करीब 5 हजार है। लेकिन उपरोक्त स्थिति ने तेली बिरादरी के भीतर नेतृत्व की भावना जगाई हुई है। यही कारण है कि जारी निकाय चुनाव में भी क़ाज़ी कैंप की ओर से चौधरी इस्लाम को ही नगर पालिका अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया था। यह उनका दुर्भाग्य रहा कि इस बार उनका नामांकन निरस्त हो गया।
दूसरी ओर पिछले साल हाजी सरवत करीम अंसारी का निधन हो जाने के कारण डॉ शमशाद के पास भी एकमात्र विकल्प क़ाज़ी कैंप ही रह गया था। इसी कारण वे क़ाज़ी कैंप में आ गए थे। उन्हें उम्मीद थी कि निवर्तमान अध्यक्ष होने के नाते क़ाज़ी कैंप उन्हें ही अपना प्रत्याशी बनाएगा। लेकिन जनमत चौधरी इस्लाम के पक्ष में था जिसे सीधे-सीधे क़ाज़ी नजर नहीं पाए। इसलिए डॉ शमशाद ने बतौर निर्दलीय नामांकन दाखिल कर दिया। दूसरी ओर चौधरी इस्लाम का पर्चा खारिज हो गया। अब दो बातें अहम हैं। एक, तेली बिरादरी के भीतर नगर को नेतृत्व देने की भावना बलवती हो रही है और वे अपने नेता की ओर देख रहे हैं। दूसरी यह कि बतौर तेली अब केवल एक ही नामांकन वैध है और वह है डॉ शमशाद का।
दूसरी ओर क़ाज़ी कैंप ने इस बार अपना प्रत्याशी मुहीउद्दीन अंसारी को बनाया है। वे हाल तक निर्दलीय प्रत्याशी थे लेकिन अब उन्हें कांग्रेस का समर्थन हासिल हो गया है। अब स्थिति यह है कि चौधरी इस्लाम की मनुहार पर क़ाज़ी निज़ामुद्दीन ने मुहीउद्दीन अंसारी को अपना प्रत्याशी तो बना दिया है, मुहीउद्दीन अंसारी ने भी इस समर्थन को सहर्ष स्वीकार कर लिया है, लेकिन सवाल यह खड़ा हो गया है कि अब तक क़ाज़ी निजामुद्दीन को अपना राजनीतिक विरोधी मानते आए अंसारी अब मुहीउद्दीन अंसारी को क़ाज़ी निज़ामुद्दीन के कहने पर क्या अपना वोट दे पाएंगे? यह सवाल दो कारणों से अहम है। एक यह कि मुहीउद्दीन अंसारी के अग्रज स्थापित अंसारी नेतृत्व के सामने कभी अंसारी बिरादरी को नहीं लुभा पाए। मुहीउद्दीन अंसारी के पिता मीर हसन अंसारी 2008 में बतौर निर्दलीय चुनाव में आए थे। लेकिन कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए थे। दूसरा कारण यह है कि अंसारी बिरादरी के सामने अंसारी प्रत्याशी के रूप में अभी कम से दो प्रभावी विकल्प और मौजूद हैं। एक भाजपा समर्थित प्रत्याशी जुल्फिकार ठेकेदार हैं जिन्हें हाजी सरवत करीम अंसारी के पुत्र उबैदुर्रहमान अंसारी उर्फ मोंटी चुनाव लड़ा रहे हैं। दूसरे चौधरी जुल्फिकार अख्तर अंसारी हैं जो बसपा के टिकट पर मैदान में हैं। वे कई बार नगर पालिका अध्यक्ष रहे अख्तर अंसारी के पुत्र हैं और उनके राजनीतिक वारिस के रूप में ही मैदान में हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि अब तक क़ाज़ी विरोध की राजनीति करती आ रही अंसारी बिरादरी क्या अब क़ाज़ी के “अंसारी” को वोट देगी या फिर अपनी पसंद के “अंसारी” को! यह सवाल इसलिए ज्यादा शिद्दत से उठ रहा है क्योंकि माना यह जा रहा है कि तेली तो अपने नेता को मजबूत करने की राह पर जा रहा है। यानि डॉ शमशाद अपनी बिरादरी में अपनी निर्णायक पकड़ बनाते दिख रहे हैं।