2022 में तत्कालीन विधायक देशराज कर्णवाल पर भारी पड़ी थी 2018 के झबरेड़ा नगर निकाय चुनाव की राजनीति
एम हसीन
झबरेड़ा। स्थानीय कांग्रेस विधायक वीरेंद्र जाती फिलहाल तलवार की धार पर चल रहे हैं। उन्हें शायद ही इस बात का अहसास होगा कि 2018 के निकाय चुनाव की राजनीति के चलते तत्कालीन भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल का क्या हाल हुआ था। लेकिन यह भी हकीकत है कि जाती जो कुछ कर रहे हैं उनके पास उसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।
गौरतलब है कि फिलहाल निकाय चुनाव चल रहा है। झबरेड़ा नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए निवर्तमान अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह एक बार फिर भाजपा टिकट पर मैदान में हैं। उनका मुकाबला उनके परंपरागत प्रतिद्वंदी डॉ गौरव चौधरी कर रहे हैं, अलबत्ता उम्मीदवार उनकी पत्नी किरण गौरव चौधरी हैं। जो समीकरण क्षेत्र में बन रहा है उसके हिसाब से किरण गौरव चौधरी अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही हैं। यह बहरहाल, अलग मसला है। अहम मसला यह है कि वीरेंद्र जाती स्वाभाविक रूप से अपनी पार्टी की प्रत्याशी के साथ हैं। वे दिन-रात, सुबह-शाम उस समीकरण को जमीन पर उतारने में प्रत्याशी की मदद कर रहे हैं जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है। बहरहाल, अहम यह है कि यहां प्रत्याशी दो चचेरे भाई हैं और दोनों के बीच चुनाव को राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के तौर पर नहीं बल्कि पारिवारिक प्रतिस्पर्धा के तौर पर ही लड़ा जा रहा है। इसीलिए एक प्रकार से स्थिति क्रॉस फायरिंग जैसी हो गई है।
ऐसी ही क्रॉस फायरिंग में कभी भाजपा के तत्कालीन विधायक देशराज कर्णवाल भाजपा प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह की ओर से पार्टी बने थे और फिर 2022 में अपना टिकट भी गंवा कर घर बैठ गए हुए हैं। अब वीरेंद्र जाती मैदान में हैं और परिस्थितियां वहीं हैं, अलबत्ता वे पार्टी कांग्रेस प्रत्याशी को ओर से हैं। अहमियत इस बात की है कि भले ही झबरेड़ा नगर पंचायत क्षेत्र में कुल मत संख्या 9 हजार हो लेकिन यहां की राजनीति का प्रभाव व्यापक रूप से विधानसभा की राजनीति पर होता रहा है। कारण यह है कि मानवेंद्र सिंह के पिता चौधरी कुलवीर सिंह कभी यहां तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इसी प्रकार डॉ गौरव चौधरी के पिता चौधरी यशवीर सिंह यहां दो बार विधायक रह चुके हैं। इसलिए पूरे ही विधान सभा क्षेत्र में दोनों के अपने-अपने मजबूत ग्रुप हैं। दोनों ही राजनीतिक दलों की राजनीति करते हैं इसलिए दोनों के संपर्क भी व्यापक हैं और चूंकि दोनों भाई हैं इसलिए बिरादरी और रिश्तेदारियों में तो दोनों का समान प्रभाव है। बहरहाल, यह सब अपने स्थान पर है। उल्लेखनीय बात यह है कि जाती जो कुछ कर रहे हैं उनके पास उसका विकल्प नहीं है। 2022 में चौधरी यशवीर सिंह ने गांव-गांव घूमकर उनके पक्ष में जनमत बनाया था। 2027 में भी उनके लिए अगर निकला तो कोई रास्ता यहीं से निकलेगा। कारण यह है कि पिछले तीन साल का उनका व्यक्तिगत परफॉर्मेंस कुछ नहीं है।