क्या मंगलौर को लेकर बदली है भाजपा की सोच?

 

मंगलौर। मंगलौर की राजनीति की शाश्वत सच्चाई पूर्व विधायक क़ाज़ी निजामुद्दीन ने अपने 24 साल के राजनीतिक कैरियर में यहां विधानसभा के 5 चुनाव लड़े हैं। वे तीन बार जीते हैं तो दो बार हारे भी हैं। लेकिन उनकी हार भी कभी राजनीतिक नहीं हुई और हार भी। उनकी यहां हार भी अक्सर तकनीकी होती रही है और जीत भी। यह इससे जाहिर है कि वे न तो वे बहुत बड़े अंतर के साथ कभी हारे और न ही कभी जीते। जैसे, 2022 में वे महज 8 सौ के करीब वोटों के अंतर से हारे थे। यह सब इसलिए होता था, क्योंकि यहां की राजनीति की जितनी बड़ी सच्चाई वे खुद हैं उतनी ही बड़ी सच्चाई यहां हाल तक निवर्तमान विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी भी थे, जो कि पिछले नवंबर में जन्नत नशीन हुए हैं और इसीलिए यहां बाय इलेक्शन हो रहा है। कोई बड़ी बात नहीं कि यहां बाय इलेक्शन क़ाज़ी निज़ामुद्दीन की बतौर कांग्रेस प्रत्याशी इसी बड़ी सच्चाई के बीच होगा; लेकिन यह भी देखना होगा कि इस बार कि दूसरी बड़ी सच्चाई यह होगी कि इस हाजी सरवत करीम अंसारी व्यक्तिगत रूप से यहां नहीं होंगे। बेशक उनके पुत्र ओबेदुर रहमान अंसारी बतौर बसपा प्रत्याशी मौजूद होंगे। लेकिन हालात का इशारा यह है कि उनकी उम्मीदवारी शायद भारतीय जनता पार्टी को यह विश्वास नहीं दिला पा रही है कि निज़ामुद्दीन हार ही जायेंगे। अर्थात इस बार मोर्चे पर खुद भाजपा को ही आना पड़ सकता है।

पार्टी इस बात को शायद समझती है। वैसे भी कम से कम इस बार भाजपा न तो यहां हार का रिस्क लेकर चुनाव लड़ना चाहती और न ही चुनाव में औपचारिक शिरकत करना चाहती। यह इसलिए माना जा सकता है कि भारी भरकम माना जाने वाले, करतार सिंह भड़ाना के रूप में, गुर्जर चेहरे की धमक यहां एक बार फिर महसूस की जा रही है। हालांकि उनकी उम्मीदवारी का ऐलान अभी नहीं हुआ है और सच यह भी है कि उनकी मंगलौर पर बेनतीजा धमक पहले भी महसूस की जाती रही है। वे पहले भी यहां आकर खाली हाथ वापिस जाते रहे हैं।

बहरहाल, अहम यह है कि मंगलौर विधानसभा का उप चुनाव लोकसभा चुनाव का परिणाम आने तक शायद नहीं टल सकेगा। चुनाव परिणाम 4 जून को आएगा और तब तक यहां उप चुनाव कराने की समयावधि निर्धारित नियम को पार कर चुकी होगी। ऐसा चुनाव आयोग नहीं कर पाएगा। अगर परिणाम आने के बाद यहां चुनाव हो तो क़ाज़ी निज़ामुद्दीन कन्विनिएंट सिचुएशन में रह सकते हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं लग रहा है। बहरहाल, भड़ाना इस बार भी किसी ठोस आश्वासन पर यहां आए हैं या महज़ अपनी ही किसी उम्मीद पर, यह अभी सामने आना बाकी है। उपरोक्त सारी चीजों के बीच, आसन्न उपचुनाव में अहमियत दो ही बातों की होगी। एक यह कि इस उप चुनाव में हाजी सरवत करीम अंसारी जाती तौर पर नहीं होंगे और दूसरी यह कि क्या इस सीट को लेकर भाजपा की सोच में कोई बदलाव आया है?

मंगलौर विधानसभा क्षेत्र में शीघ्र संभावित उप चुनाव के मद्देनजर एम हसीन की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

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