बिना समर्पण की मर्जी नहीं बनता नगर में विधायक मेयर

एम हसीन

रुड़की। नगर के सामाजिक संगठन “समर्पण” की बुनियाद रक्तदान के लिए रखी गई थी और इससे कांवड़ सेवा को भी जोड़ा गया था। बात केवल इन पवित्र उद्देश्यों की ही नहीं थी, बल्कि यह भी थी कि संस्था अपने दोनों उद्देश्यों के प्रति निष्ठावान भी रही है। दूसरी बात, चूंकि “रक्तदान” से मेडिकल एसोसिएशन, मेडिकल स्टोर एसोसिएशन, ड्रग्स एंड फार्मिसिटिकल एसोसिएशन आदि संगठनों का स्वाभाविक जुड़ाव हुआ तो इन संगठनों के सहयोग से यह अपने स्थापना काल में ही एक प्रभावशाली संगठन बन गया था। फिर कांवड़ सेवा क्योंकि धर्मसेवा का क्षेत्र है इसलिए नगर की दर्जनों धार्मिक और धर्म का काम करने वाली सामाजिक संस्थाएं भी इससे जुड़ी। चूंकि जाहिरा तौर पर संगठन को 365 दिन या रक्तदान शिविर लगाने हैं या वृक्षारोपण करना है या सफाई अभियान चलाना है या भंडारा करना है। तो अधिकारियों का, राजनेताओं का, उद्योगपतियों का उनके कार्यक्रमों में आना भी स्वाभाविक हुआ। यूं उसे और अधिक प्रभाव विस्तार मिला और फिर तो स्थिति यह बन गई कि उसके कार्यक्रमों में आई आई टी के स्टूडेंट्स का, कर्मचारी संगठनों का, पेंशनर्स आदि का भी योगदान होने लगा। विस्तार इतना हुआ कि नगर की कोई 6 दर्जन संस्थाओं और संगठनों के केंद्र में समर्पण संस्था और इसके पदाधिकारी आ गए। जो स्थिति “सर्वत्र व्याप्त” राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की है, वही इस संस्था की हो गई। बेशक यह समर्पण का सामाजिक रूप था, जो भले ही एक वर्ग विशेष के बीच ही काम करता है, भले ही समर्पण समग्र समाज के लिए काम नहीं करता, भले ही वह धार्मिक विभेद बनाकर रखता है, लेकिन काम करता है, इसमें कोई दो राय नहीं है।

जब इस संगठन का इतना प्रभाव है तो यह तो हो नहीं सकता था कि इसकी राजनीतिक उपयोगिता महसूस न की जाती हो। यह उपयोगिता पिछले दशक में स्थानीय भाजपा विधायक रहे सुरेश जैन ने शुरू में ही समझ ली थी। तब उन्होंने केवल इतना किया था कि संस्था के संस्थापक कट्टर हिंदूवादी नेता और निवर्तमान पार्षद चंद्र प्रकाश बाटा को किनारे कर दिया था और संगठन में अहमियत रखने वाली पदाधिकारियों को दूसरी कतार को अपने संरक्षण में ले लिया था। बात यहां तक पहुंची थी कि उन्होंने संगठन में तब दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले नरेश यादव को अपना व्यक्तिगत पी ए तक बना लिया था। नरेश यादव की अगुवाई में ही समर्पण ने न केवल सुरेश जैन को दूसरी बार विधायक बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी बल्कि सुरेश जैन की पहल पर ही 2003 में दिनेश कौशिक को नगर पालिका अध्यक्ष और 2013 में यशपाल राणा को भी मेयर बनाने में भी अहम रोल प्ले किया था। इस बीच 2012 में हालांकि समर्पण का सहयोग होने के बावजूद सुरेश जैन मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे। फिर समर्पण ने अपना रास्ता बदला था। नरेश यादव और उनकी टीम ने सुरेश जैन का राजनीतिक कैरियर खत्म कर देने वाले प्रदीप बत्रा का कैंप ज्वाइन कर लिया था। अब वे बरसों से बत्रा का कैंप संभाल रहे हैं। इस बीच उन्होंने 2019 में बत्रा की व्यक्तिगत पसंद गौरव गोयल को मेयर बनाने में निर्णायक भूमिका अदा की थी और 2022 में प्रदीप बत्रा को ही तीसरी बार विधायक बनाने में भी। इस मामले में यह भी दिलचस्प बात है कि समर्पण की अपनी कोई राजनीतिक निष्ठा नहीं दिखती। उसने बारहा भाजपा के विधायक बनाए हैं तो निर्दलीय मेयर भी बनाए हैं। समर्पण की निष्ठा व्यक्ति में दिखती है। पहले सुरेश जैन में दिखाई देती थी और अब प्रदीप बत्रा में दिखाई देती है। बहरहाल, आज की समर्पण की नगर में हैसियत लासानी है, आश्चर्यजनक है। वह हजारों मेडिकल स्टोर्स और हजारों का स्टाफ रखने वाले डॉक्टर्स का प्रतिनिधि है। इतनी ताकतवर संस्था की हैसियत को चुनौती देने का माद्दा नगर की राजनीति में नहीं दिखाई देता। यही कारण है चुनाव लड़ने का इच्छुक कोई भी चेहरा तभी कामयाब हो पाता है जब उसे समर्पण का समर्थन मिल जाए। अब देखना होगा की निकाय के अगले चुनाव में समर्पण किसे मेयर बनाने का बीड़ा उठाता है।